गढ़वाली इंडस्ट्री अब ऐसी हो चुकी है कि हर दिन कोई न कोई गीत रिलीज होता ही रहता है। रोज रिलीज होते इन असंख्य गीतों की भीड़ में कभी कभी कोई गीत ऐसा होता है जो कि आपको रुकने और उसे सुनने को मजबूर कर देता है। ऐसे ही एक गीत हाल में सुनने को मिला तो उसके विषय में खुद को लिखने से रोक नहीं पाई।
“कन घोणी कुयेडी लगी,
(कितना घनघोर कोहरा लग रहा है)
रुणा झूणा पाणी”
(बादलों के साथ साथ हलका हलका पानी भी बरस रहा है)
जहाँ ज्यादातर गढ़वाली गीतों में आजकल हिंदी शब्दों या लहजे की झलक देखने को मिल जाती है वहीं जब कभी ठेठ पहाड़ी भाषा सुनने को मिल जाए तो वह कानों में एक तरह की मिठास सी घोल देती है। ऊपर लिखी पंक्तियाँ ऐसी ही एक गीत की शुरुआती पंक्तियाँ हैं। ये बोल एक लोकगीत के हैं जिसे एमजीवी डिजिटल (MGV DIGITAL) के ऑफिसियल चैनल से रिलीज किया गया है।
एक शादी शुदा लड़की की मन की व्यथा को बयान करता है
लोकगीत लोक और उसकी परंपरा से इस तरह घुले हुए होते हैं जैसे कि चाय में चीनी। ऐसा ही कुछ इस गीत में देखने को भी मिलता है। यह लोकगीत एक तरह तो एक शादी शुदा लड़की की मन की व्यथा को बयान करता है वहीं पहाड़ के मौसम को भी बहुत खूबसूरती से बयान करता है। बारिश का मौसम है हल्की हल्की फुआर पड़ रही है जिससे कोहरा छा गया है और लड़की को इस मौसम में अपने पीहर की याद आ रही है। ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों में बर्फ पड़ने लगी है और लड़की को चिंता हो गई है कि अगर मौसम नहीं खुला तो वह दूसरे पहाड़ पर बसे अपने मायके को कैसे देख पाएगी। अपनी इस याद और अपनी इस चिंता को वह गीत के रूप में प्रस्तुत कर रही है। अपने नैहर से आने या नेहर को जाने वाले लोगों से अपनी मन की इच्छा बता रही है ताकि वह उसका सन्देशा उसके नैहर तक पहुँचाये। उसे अपने मायके से किस चीज की आस है यह इस गीतों के बोलों के माध्यम से झलकता है।
कहा जाता है यह गीत घसियारो (गाँव में घास काटने जाने वाली औरतों) द्वारा गाया जाता था। आज के वक्त में, जब हर कोई एक फोन कॉल की दूरी पर मौजूद है, लड़की के मन की बात समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन इन पंक्तियों द्वारा इन्हें आसानी से समझा जा सकता है।
इन कलाकारों की मेहनत का नतीजा है यह गीत
गायिकी
एक लोकगीत से वही लोकगायक न्याय कर सकता है जो कि संगीत के ज्ञान के साथ लोक की भाषा की समझ भी रखता हो। इस मामले में गीत के मुख्य गायक विवेक नौटियाल (Vivek Nautiyal) और बीच-बीच में उनका साथ देने वाले गुंजन डँगवाल (Gunjan Dangwal) दोनों ही खरे उतरते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस गीत के लिए एमजीवी डिजिटल (MGV DIGITAL) ने सही लोकगायक का चयन किया है। विवेक नौटियाल ने बड़े मार्मिक ढंग से इस गीत को प्रस्तुत किया है।
कोरस
एक गीत को मधुर और कर्णप्रिय बनाने के लिए हर तरह के साज-बाजे की आवशयकता होती है। वहीं कोरस भी गाने का एक अहम हिस्सा होता है। एक अच्छा कोरस न केवल गाने को सजाता है वरन उसके कर्णप्रियता को बढ़ाने का काम भी करता है। “द्यो लागी” इस गीत को सँवारने में इसके कोरस का बहुत बड़ा हाथ है। एकदम सही जगहों पर इसका इस्तेमाल किया गया है जिसका पूरा श्रेय संगीत संयोजक (म्यूजिक डायरेक्टर) को जाता है। इस गीत में कोरस अमित खरे (Amit Kharre), अक्षत सेमवाल (Akshat Semwal), विशाल शर्मा (Vishal Sharma), प्रत्युष मनरल (Pratyush Manral), आफ़तब सैफी (Aftab Saifi), विवेक नौटियाल (Vivek Nautiyal), गुंजन डँगवाल (Gunjan Dangwal) ने निभाया है।
संगीत:
चैतवाली, गिंज्याली जैसे सुप्रसिद्ध लोकगीत को अपने संगीत से सजाने वाले गुंजन डँगवाल (Gunjan Dangwal) ने इस लोकगीत को संगीत में पिरोया है और इसके साथ पूरा न्याय किया है। गीत की पहली धुन कानों में पड़ते ही मन तर हो जाता है। वहीं गीत का संगीत में एक अपबीट फ़ील है जो आपके कदमों को थिरकने के लिए भी प्रेरित करते हैं।
इस संगीत को इतना मधुर बनाने में गुंजन के आलवा भी तीन लोगों का हाथ है। पहला इस गीत की रिदम जो सुभाष पांडे (Subhash Pandey) ने बजाई है दूसरा प्रत्युष मनरल (Pratyush Manral) जिनके गिटार से ऐसे सुर छिड़े हैं कि सुनकर आनंद या गया और तीसरा नाम अतुल बमोला (Atul Bamola) का है जिनकी बाँसुरी की धुन ने इस लोकगीत में समाँ ही बाँध दिया। इस विरह गीत को इस बाँसुरी की धुन ने चार-चाँद लगा दिए।
वीडियो
अगर बात की जाए इस गीत के वीडियो की तो इस गीत को स्टूडियो में ही शूट किया गया है। एक लिपसिंक गीत की तरह ही इसे भी प्रस्तुत किया गया है। गाने के बीच-बीच में सारे कलाकारों को दिखाया गया है। कभी रिदम बजाते वक्त, कभी कीबोर्ड पर गुंजन डँगवाल को, कभी बाँसुरी पर अतुल बमोला को और कभी गिटार पर प्रत्युष को दर्शाया गया है। पर मुझे लगता है कि गीत के बोलो से मिलता हुआ फुटेज भी गीत में कहीं कहीं पर मौजूद होता तो गीत का यह विडिओ और निखर कर आ सकता था।
उम्मीद है गीत का पूरा वीडियो भी बनाया जाएगा जिसमें गीत के बोलों से मिलते दृश्य परदे पर दिखे ताकि उस परिस्थिति को लोग देख सकें जिसमें यह गीत कभी स्त्रियों द्वारा गाया जाता रहा होगा।
वह चीजें जो बेहतर हो सकती थीं
वैसे तो यह गीत गायकी हो या संगीत हर स्तर पर खूबसूरत बना है। हर कलाकार ने इस गीत को अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है और यह चीज दिखती भी है। लेकिन कुछ बातें हैं जो कि मुझे लगता है बेहतर हो सकती थी।
पहली यह कि यह गीत एक स्त्री की मन की व्यथा बताता है लेकिन वह स्त्री ही गीत से गायब दिखती है। अगर स्त्री किसी रूप में इस गीत में मौजूद होती तो शायद गीत और भावनात्मक हो सकता था। यही कारण है कि मुझे लगता है कि गीत का एक फ़ीमेल वर्शन भी स्टूडियो को निकालना चाहिए।
दूसरा ये कि जितना खूबसूरत ये गीत है उससे कहीं ज्यादा इसका वीडिओ बनाया जा सकता था। ताकि जो लोग भाषा नहीं समझ पाए वो वीडियो देखकर कर गीत का भाव महसूस कर पाते। उम्मीद है इसका विडिओ जल्द ही देखने को मिलेगा।
निष्कर्ष
अंत में यही कहूँगी कि डीजे सॉन्ग्स की भीड़ में यह गीत एक ताजी हवा के झोंके सा आया है जो कि मन को शांत भी करता है। आशा है उत्तराखंड में ऐसे ही कर्णप्रिय फोक (लोकगीत) बने और संस्कृति के साथ-साथ लोग पहाड़ी भाषा को और करीब से जान सकें।