उत्तराखंड के कण कण में संगीत बसता है। यहाँ की वादियाँ हवाओं के साथ झूमती है, कोयल कुहू कुहू करती हुई ये एहसास कराती है कि बिना शब्दों का संगीत भी कानों को कितना कर्णप्रिय लग सकता है। अगर मैं कहूँ कि ये धरती लोक संस्कृतियों से सराबोर है तो गलत नहीं होगा। इसी धरती पर इस संस्कृति को बचाने के लिए कई संगीतज्ञ जन्मे हैं और आज कई लोग अपने हुनर के जरिए उनकी बचाई इस कला की धरोहर को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ अपनी गायिकी से, कुछ अपने नृत्य से, कुछ अपने शब्दों से और कुछ अपने दिमाग से।
इन्हीं नामों में एक नाम उस व्यक्ति का है जो अपनी गायिकी के लिए तो मशहूर है ही उससे ज्यादा अपने कुशल व्यवहार के लिए जाने जाते हैं। अपनी गायिकी से सबके दिलों पर राज करने वाले सौरव मैठाणी आज युवा गायकों में अपना एक अलग स्थान कायम किये हुए हैं। सौरभ मूल रूप से रुद्रप्रयाग जिले के क़्वीला खाल गाँव के रहने वाले हैं। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही संपन्न करने के बाद ये देहरादून के वासी हो गए और अपनी आगे की शिक्षा यहीं संपन्न की। सौरभ मैठाणी के जीवन से जुड़ी और भी बहुत सारी बातें आज हम करेंगे और जानेंगे उनके इस सफर की दास्ताँ। चलचित्र सेंट्रल के माध्यम से मैं सुजाता देवराड़ी आप सबका स्वागत करती हूँ और हाजिर हूँ युवा लोक गायक सौरभ मैठाणी के साक्षात्कार के साथ ।
प्रश्न: सौरभ सबसे पहले तो चलचित्र सेंट्रल में आपका स्वागत है। हमें खुशी है कि आप इस साक्षात्कार का हिस्सा बने। सबसे पहले तो आप पाठकों को अपने विषय में बताएं?
उत्तर: सर्वप्रथम, मैं चलचित्र सेंट्रल का आभार व्यक्त करता हूँ कि आप मेरा परिचय सभी संगीत प्रेमी पाठकों से करा रहे हैं। मैं सौरभ मैठाणी 25 वर्ष का युवा लोक गायक अभी वर्तमान में देहरादून में रहता हूँ। मैं वर्तमान में लोक संगीत पर कार्य कर रहा हूँ। उसके आलवा नव युवक युवतियों को संगीत की शिक्षा भी देता हूँ।
प्रश्न: परिवार हर किसी की ज़िंदगी का अहम हिस्सा होता है और उस परिवार में रहने वाले सदस्यों की भूमिका भी अलग अलग हमारे जीवन से जुड़ी होती है। सौरभ आपके परिवार में कौन कौन हैं? उन के विषय में कुछ बताइए प्लीज ।
उत्तर: मेरे परिवार में मेरे माता-पिता और एक छोटा भाई है जो कि तबला वादक है।
प्रश्न: सौरभ चूँकि आपका बचपन गाँव में बीता है जब आपने देहरादून आने का निर्णय लिया तो क्या परिवार भी साथ आया या आप केवल अपनी पढ़ाई के लिए अकेले निकल पड़े?
उत्तर: मैं अपने परिवार के साथ सन 2002 में देहरादून आया था और उस समय से अभी तक यहीं से मैंने अपनी पढ़ाई लिखाई की व अपना संगीत का जीवन शुरू किया। काम की व्यस्तता के चलते साल में 4 से 5 बार गाँव जाना होता है। उसके अलावा जब गाँव में कोई भी देव कार्य हो या गाँव का कोई अन्य महत्वपूर्ण कार्य हो तो समय-समय पर जाता रहता हूँ। गाँव से बचपन जुड़ा है तो लगाव होना लाजमी है।
प्रश्न: कहते हैं कि गायिकी एक तरह का जुनून होती है और व्यक्ति के अंदर इसके लक्षण या तो बचपन से दिखाई देने लगते हैं या जब वो इस तरह के परिवेश में रहने लगता है तब। आपने मन ये में गायिकी का ये दीप कब प्रज्वलित हुआ? और कब अपने तय किया कि अब इसे ही अपनी मंजिल बनानी है?
उत्तर: बिल्कुल सही कह रही हैं आप। मुझे बचपन से ही गाने क शौक था क्योंकि मेरी माता जी काफी अच्छा गाती हैं और वर्तमान में आकाशवाणी द्वारा पंजीकृत लोक गायिका भी हैं। पहले मैं 2013 तक शौक के लिए गाता था पर उसके बाद जब मुझे एहसास हुआ कि ये शौक़ ही मेरी मंजिल है तो मैंने संगीत क्षेत्र को ही अपना प्रोफेशनल फील्ड चुन लिया।
प्रश्न: सौरभ जहाँ तक मैं जानती हूँ लोक गायन को लोग जितना आसान समझते हैं उतना असल में है नहीं। आप इतने समय से लोकगायन से जुड़े हैं तो आपका तजुर्बा इस बारें में क्या कहता है?
उत्तर: बिल्कुल सही! लोक संगीत एक सागर है। यदि हम बात लोक संगीत की करते हैं तो हमें पूर्ण रूप से अपनी संस्कृति, परिवेश, परंपरा, वाद्य यंत्र, खानपान व अपने राज्य से जुड़ी हुई हर एक चीज की जानकारी होनी चाहिए। अगर लोक संगीत कि मैं बात करूँ तो लोक संगीत या लोक गायक का मतलब यह नहीं है कि दो चार गीत गढ़वाली में गा दिए हैं तो आप लोग समझें कि लो हम तो लोक गायक बन गए। लोक गायकी के लिए थड़िया, चौफुला, बाजूबंद, तानें, चाँचड़ी, रासो, मांगल, पवाड़ा, जागर, जुड़ा, छपेली और न्यूली इन सभी लोक संगीत की शैलियों की जानकारी होनी आवशयक है। मैं भी निरंतर अपने बड़ों से यह सीखने की कोशिश करता हूँ।
प्रश्न: जानकारी के मुताबिक आप तो पढ़ाई में भी बहुत अव्वल थे और अच्छे स्कूलों से आपकी शिक्षाएं संपन्न हुई हैं। फिर बी. कॉम. करने के बाद अचानक से भातखण्डे म्यूजिक अकेडेमी से संगीत सीखना फिर आदरणीय मुरलीधर जगूड़ी जी, मिस वाहिनी, दिनेश कृष्ण बेलवाल, अजय रावत जी जैसे गुरुओं का सानिध्य लेना और पूरी तरह से संगीत को अपना व्यवसाय बनाना ये सब कैसे मुमकिन हुआ ?
उत्तर: यह निर्णय मैंने बहुत जल्दबाजी में नहीं लिया। 2013 के बाद जब मैं आकाशवाणी व संस्कृति भारत विभाग दूरदर्शन द्वारा पंजीकृत हुआ और मुझे लोगों द्वारा पसंद किया जाने लगा। फिर धीरे धीरे मुझे कार्यक्रम मिलने लगे तो अपने आप ही मुझे इस तरफ ज्यादा आकर्षण लगा और मैंने अपना व्यवसाय व आय का साधन संगीत को ही चुन लिया। ये काम चुनने के पीछे मेरी खुशी और मेरी पढ़ाई ही थी। आज जो कुछ भी मैंने सीखा है मैं चाहता हूँ मैं वही चीज संगीत के प्रति रुचि रखने वाले सभी बच्चों को सिखाऊँ।
प्रश्न: सौरभ आपकी माता श्री को गायन का शौक रहा है हालाँकि उन्होंने कभी अपनी गायिकी को दुनिया के सामने नहीं रखा पर गाँव के छोटे मोटे समारोह में वे लोगों के साथ गाया करती थी। जब आपने तय कर लिया था कि आपको संगीत के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाना है तो आपको परिवार की तरफ से कभी किसी प्रकार की रोक टोक का सामना तो नहीं करना पड़ा?
उत्तर: जी, घरवालों की रोक टोक तो रही क्योंकि घरवाले चाहते थे कि मैं पढ़ाई लिखाई करके बैंक की या अन्य किसी सरकारी नौकरियों की तैयारी करूँ लेकिन मेरा मन नहीं लगा। जब मैं थोड़ा बहुत गायिकी के माध्यम से कमाने लगा व लोगों द्वारा मेरे घर वालों के समक्ष मेरी तारीफ करने लगे तो धीरे-धीरे घर वालों ने मुझे प्रोत्साहित करना शुरू किया। फिर जब भी मेरी नौकरी की बात आती तो मेरा निर्णय मेरा गायन ही रहता और इस लाइन में आने के लिए परिवार भी राजी हो गया।
प्रश्न: गायन एक तरह का समर्पण है जिसमें आसानी से सफलता नहीं मिलती है तो आपके करियर का वो पहला गीत कौन सा था जिसे आपने पहली दफा स्टूडियो में जाकर रेकॉर्ड किया? और क्या महसूस किया था आपने उस वक़्त? कैसा अनुभव था वो?
उत्तर: सुजाता जी मेरा जीवन का पहला गीत स्टूडियो में ‘कुटिया माधुरी’ नाम से रिकार्ड हुआ था। और सबसे पहले मुझे स्टूडियो ले जाने वाले संगीत निर्देशक विनोद चौहान जी थे और उनके सानिध्य में मैंने यह श्रृंगार गीत गाया था जो कि बहुत लोगों को पसंद आया। उस समय का एक अलग ही मिजाज का वह गीत था जिसको लेकर मुझे बड़ी उत्सुकता थी।
प्रश्न: सौरभ उतार चढ़ाव जीवन की सीढ़ी है जिस सीढ़ी से हमें ऊपर भी चढ़ना होता है और नीचे भी उतरना होता है। लोकगायन की इस सीढ़ी को चढ़ने में आपको किन किन परिस्थियों का सामना करना पड़ा? और इन अच्छे बुरे हालातों का सामना करने बाद आपको क्या सीखने को मिला?
उत्तर: हर कार्य हर क्षेत्र मैं कुछ भी प्रगति करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता ही है। फिर संगीत जगत तो एक मनोरंजन का साधन माना गया है इसमें अभी भी और आने वाले भविष्य में भी कई चुनौतियां आएँगी क्योंकि यह एक आकर्षण का कार्य है। हम से अच्छे गायक भी हैं और भविष्य में और अच्छे गायक भी आएँगे। यहाँ सारा निर्णय आम जनता के हाथ में है तो निरंतर ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हमें बस कोशिश और मेहनत करते जाना है। हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि हम अच्छे गीत गाएँ उन गीतों का अच्छा फिल्मांकन करें ताकि एक संगीत जगत में हमारा अलग स्तर बना रहे।
प्रश्न: मैं व्यक्तिगत रूप से आपके सभी गाने सुनती हूँ आपकी मेहनत और आपकी गायिकी हर गीत में साफ साफ झलकती है। बहुत सारे गीतों में आपने अपनी आवाज़ दी है कुछ अपने चैनल के लिए कुछ औरों के चैनल के लिए। इन सभी गीतों तक पहुँचने के लिए वो हिट गीत कौन सा था जिसने आपको सफलता का स्वाद चखाया।
उत्तर: मैं मेरे हिट गीतों में से आपको क्या कहूँ। मैं तो अपने सभी गीतों को सामान्य मानता हूँ। मेरी नज़र में हर गीत सफल होता है क्योंकि हर गीत का अलग महत्व होता है। उनको बनाने में भी हर एक गाने की तरह उतनी ही मेहनत लगती है। मेरे कुछ गीत श्रृंगार पर है तो कुछ गीत अध्यात्म पर, कोई गीत खुदेड़ है तो कोई गीत थिरकने के लिए बनाने गये है। आम जनमानस के आधार पर जिन गीतों से मुझे लोकप्रियता मिली उन गीतों में मैं सुरीला, तू रैंदी माँ, गुड्डू का बाबा, नीलिमा, हिमगिरि की चेली, ढोल दमों की थाप आदि गीतों का नाम लेना चाहूँगा।
प्रश्न: आपकी ज़िंदगी में सबसे ज्यादा खास व्यक्ति कौन रहा है जिसने आपको सबसे ज्यादा इंसपायर किया हो ?
उत्तर: गुरुजन और परिवार तो हमेशा अपने बच्चे के लिए अच्छा सोचते हैं परंतु इसके अलावा मेरे दो-तीन मित्र है जो मुझे बहुत उत्साहित करते हैं। मैं उनसे इंस्पायरर हूँ उनका हर कदम पर मुझे साहस और मेरा साथ देना ही मुझे आगे बढ़ने की तरफ मोटिवेट करता है। उनके नाम हैं सोहन चौहान, दिव्या रावत व राजेंद्र बलूनी जी। मैं हृदय से उनका आभार व्यक्त करता हूँ।
प्रश्न: सौरभ आप एक खुद की म्यूजिक अकेडमी चलाते हैं ये खयाल आपको कैसे आया और क्या सोचकर आपने इस अकेडमी का शुभारंभ किया?
उत्तर: सुजाता जी जब मैं घर पर रियाज करता था तो उस दौरान मोहल्ले के कई लोग मुझसे पूछा करते थे कि आप संगीत सीखते हैं या सिखाते भी हैं। मैंने उनसे कहा कि मैं बच्चों को सिखाता भी हूँ और सिखाने का मन भी है। तो धीरे-धीरे पहले मैंने अपने घर से छोटे-छोटे बच्चों को क्लासेज देना शुरू किया। उससे मुझे दो फायदे हुए एक तो मेरा रियाज हुआ और दूसरा मैं यह अपना कर्तव्य मानता हूँ कि जितना मुझे आता है उतना ज्ञान मैं किसी और के साथ भी बाँटू। क्योंकि ज्ञान बाँटने से बढ़ता है। बस यही सोच मुझे प्रेरित करती गई और बन गई संगीत अकेडमी। अभी मैं ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरीके से क्लास देता हूँ। ईश्वर की कृपा रही तो भविष्य में जल्द ही देहरादून में एक बड़ा संगीत एकेडमी भी खोलूँगा।
प्रश्न: सौरभ कला एक ऐसा विषय है जिसपे अगर बातें शुरू की जाए तो खत्म होने का नाम नहीं लेती है। फिर वक़्त का पहिया भी अपने टाइम पर घंटी बजाकर सावधान कर देता है कि बस करो अब कितना बोलोगे। आपसे बात करके वाकई बहुत अच्छा लगा और मुझे उम्मीद है कि पाठकों को भी आपके विषय में इतनी जानकारी मिलकर खुशी जरूर होगी। चलचित्र -सेंट्रल से जुडने के लिए आपका धन्यवाद। जाते जाते आप आपने फैंस के लिए अगर कुछ कहना चाहते हैं तो जरूर कहिए और आपके द्वारा गाये गये कुछ पसंदीदा गीतों के विषय में पाठकों को बताएं?
दोस्तों तो ये थी लोकगायक सौरभ मैठाणी के साथ एक प्यारी सी बातचीत। जिसमें हमने उनसे उनके सफर के बारे में कई सारी बातें की। उम्मीद है आपको अच्छा लगेगा उनके विषय में जानकार। हमें अपनी राय जरूर दीजिएगा और अगर आप भी सौरभ मैठाणी के फैंस हैं तो अपनी बात और उनका कोई आपका पसंदीदा गीत कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताइएगा।
Bahut hi khoobsoorat aur inspiring interview 😊👌🎵