नरेंद्र सिंह नेगी और अजंलि खरे का ‘स्याली रामदेई’ लोगों को आ रहा है पसंद

नरेंद्र सिंह नेगी और अजंलि खरे का 'स्याली रामदेई' लोगों को आ रहा है पसंद

पहाड़ी संगीत पिछले कुछ वर्षों से बहुत तेजी से बढ़ रहा है। हर दिन न जाने कितने ही गीतअलग-अलग यूट्यूब चैनल्स पर आते जाते हैं। लेकिन संगीत का कर्णप्रिय होने के साथ उसका सामाजिक सरोकार होना भी काफी जरूरी है और यह काम जितना अच्छी तरीके से नरेंद्र सिंह नेगी ने किया वही किसी ने भी नहीं किया है।

यही कारण है कि इतने वर्षों बाद भी नरेंद्र सिंह नेगी आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने अपने गायन से न केवल पहाड़ी संगीत को आगे बढ़ाया है वरन उसके माध्यम से जन साधारण के मुद्दे को भी उठाया है। यही करण है उनके गीत आज भी आते ही छा जाते हैं।

उनका नया गीत भी कुछ ऐसा ही है जो कि लोगों को काफी पसंद आ रहा है। 16 जुलाई को मशकबीन (Mashakbeen) चैनल पर ‘स्याली रामदेई (Syali Ramdeyi)’ ने आते ही काफी व्यूज इक्कठा कर लिए हैं। इस गीत को नरेंद्र सिंह नेगी के साथ अंजली खरे (Anjali Khare) ने गाया है जो कि इससे पहले होली का खिलाड़ी में भी नरेंद्र सिंह नेगी के साथ गा चुकी हैं।


गाने को पौड़ी के खूबसूरत जंगलों पर फिल्माया गया है जिस पर अभिनय बृजमोहन शर्मा (Brijmohan Sharma) व अंजली नेगी (Anjali Negi) ने किया है। गाने के बोलों के साथ-साथ इसकी धुन भी खुद नरेंद्र सिंह नेगी ने तैयार की और संगीत संयोजन विनोद चौहान (Vinod Chauhan) ने किया है। इस गीत के रिकार्डिस्ट – पवन गुसाईं (Pawan Gusain केदार स्टूडियो, देहरादून ) हैं।

गाने के बारे में

पहाड़ी जनजीवन प्रकृति पर ही निर्भर करता है। हमेशा से पहाड़ी ग्रामवासी अपनी जरूरतों के लिए जंगलों पर निर्भर रहते आए हैं और किसी घर के बुजुर्ग की भाँति उनका आशीर्वाद ले उनका ख्याल भी रखते आए हैं। यह जंगल भी कभी चूल्हे के लिए लकड़ी और मवेशियों के लिए घास देकर अभिभावक होने का फर्ज निभाते आए हैं। लेकिन फिर कानूनों के आने से गाँव वासियों और इन जंगलों का यह रिश्ता टूट सा गया है। इसका खामियाजा उन ग्रामीणों को ज्यादा उठाना पड़ा है जो अपने जीवन यापन के लिए इन वनों पर ही आश्रित थे। नेगी जी ना नव रिलीज हुआ गीत इसी परेशानी को दर्शाता है।

गाने में कुछ घस्यारी महिलायें पौड़ी के जंगलों में आपस में अपना मनोरंजन कर रही हैं, छाछड़ी, चौफुला खेल रही हैं। घास और बांज बुरांस काटते हुए संगीत का सहारा लेकर मस्त मगन हैं। वही एक घस्यारी कहती है कि जैसे ही मैंने घास का गडोला बाँधा वैसे ही सरफिरे पातरोल भैजी (वन दारोगा) आपका आना हुआ। वहीं वन दरोगा भी कहते हैं कि जिस जंगल में तु घास के लिए आई हैं वहीं मेरी चौकी है वहीं मेरी ड्यूटी है। इन दो किरदारों के वार्तालाप से गीतकार ने पहाड़ी ग्राम वासियों की परेशानी को खूबसूरत तरीके से दर्शाया है।

सुभाष पाण्डे की रिदम पर दो लोगों की नोंक-झोंक इस गाने में दिखाई गई हैं। इस गाने को डायरेक्ट कमल जोशी ने किया है (Kamal Joshi) बाखूबी किया है। कुल मिलाकर एक सुंदर गाना रिलीज हुआ है जिसे दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है। रिपोर्ट लिखे जाने तक यह छ लाख व्यूज का आंकड़ा पार कर चुका है।

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