निर्देशक – एड रेमंड
लेखक – डैन गोल्डन
भाषा – अंग्रेजी
लेखक – डैन गोल्डन
भाषा – अंग्रेजी
मुख्य किरदार:
ट्रीट विलियम्स – डॉक्टर डेविड हेन्निंग
मैरी पेज केलर -डॉक्टर क्रिसटीन एडमंटन हेनिंग
हेननेस जैनिक -डॉक्टर एरिक फोरमैन
कैथरीन डेंट – सुसान एडमंटन (क्रिस्टीन की बहन )
टोनी डेनिसन- मेजर जनरल थॉमस स्पार्क्स
जिओफ पियर्सन – जनरल आर्थर मैनचेक
क्रिस्टल चाकोन – नर्स जोसी रैंडल
वेनोमस 2001 में आई एक डिजास्टर फिल्म है। यह फिल्म एड रेमंड द्वारा निर्देशित है और फिल्म डैन गोल्डन द्वारा लिखी गयी है।
कहानी की शुरुआत नवम्बर 1990 से होती है जहाँ एक वैज्ञानिक एक औरत और मर्द को अपने प्रयोग दिखाने मोहावे रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेण्टर ले जा रहा है। यह प्रयोग एक जैविक हथियार को बनाने के लिए हो रहा है जिसे अमेरिका ईराक के ऊपर इस्तेमाल करना चाहता है। जिन्हें वह आम रिपोर्टर समझ रहा है वह असल में ईराक के जासूस हैं। जासूस प्रयोगशाला में पहुँचकर हथियार को नेस्तानाबूद कर देते हैं। यह हथियार कुछ सांप हैं जिनको जेनेटिक प्रयोग द्वारा तैयार किया गया है। प्रयोगशाला तो खत्म हो जाती है लेकिन एक शॉट में हमे दिखता है कि कुछ सांप जिंदा हैं और प्रयोगशाला से भाग चुके हैं। यह कहानी की प्रस्तावना(प्रोलोग) है।
ध्वस्त हो चुकी प्रयोगशाला से भागते साँप |
कहानी वर्तमान समय यानी दस साल आगे 2001 में आ जाती है। इन दस सालों में मोहावे रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेण्टर में क्या हुआ था सभी भूल चुके हैं। सांता मीरा स्प्रिंग्स एक छोटा सा कस्बा है। मोहावी रेगिस्तान के इर्द गिर्द बसा यह कस्बा कुछ दिनो से भूकम्प के झटके महसूस कर रहा है। ये एक आम सा कस्बा है जहाँ लोग अपनी अपनी आम सी जिंदगी जी रहे हैं। फिर इधर अचानक से लोग बीमार पड़ने लगते हैं। यह बिमारी झुखाम, चक्कर और गले में खराश से शुरू होती है और कुछ ही देर में व्यक्ति की मौत हो जाती है। डॉक्टर हेनिंग यहाँ के हॉस्पिटल में काम करते हैं। उनकी माने तो एक वायरस इधर फ़ैल रहा है। वो कुछ खून के सैंपल अपनी पूर्व पत्नी डॉक्टर एडमंटन को भेजते हैं। वहाँ जाकर उन्हें मालूम होता है कि यह वायरस बेहद खतरनाक है।
यहाँ से दांव पेंचों का सिलसिला शुरू हो जाता है। यह वायरस ऐसा है कि इसके विषय में बात आगे निकली तो सेना के कई बड़े लोगों की कलई खुल सकती है क्योंकि यह वही वायरस है जो सेना दस साल पहले बना रही थी। इसलिए बड़े ओहदे में मौजूद लोग इसे अपने तरह से निपटने की कोशिश करते हैं। और उनकी कोशिश ऐसी है जिसमे कस्बे वालों की मौत होना निश्चित है।
आखिर वायरस कैसे फ़ैल रहा है? क्या इसका एंटी डॉट बन पायेगा? क्या उन बड़े लोगों की गलती का खामियाजा सांता मारी के बाशिंदों को अपनी जिंदगी से हाथ धोकर उठाना पड़ेगा? क्या डॉक्टर हेनिंग और डॉक्टर एडमंटन अपने कस्बे के लोगों के लिए कुछ कर पाएंगे?
यही सब सवाल कहानी को आगे बढ़ाते हैं।
कहानी सधी हुई है और रोचकता बनाये रखती है। जहाँ एक तरफ डॉक्टर हेनिंग, डॉक्टर फोरमैन, डॉक्टर एडमंटन हैं जो कि कस्बे वालों को बचाना चाहते हैं वहीं पर उनकी मदद जिन लोगों ने करनी थी वो पूरे कस्बे को निस्तेनाबूद करना चाहते हैं। वे लोग कैसे इस त्रासिदी से उभरते हैं यह देखने के लिए फिल्म आप अंत तक देखते चले जायेंगे। हाँ, फिल्म में वायरस का एंटीडॉट जितनी आसानी से बनता है उतनी आसानी से असल की जिंदगी में बनता तो शायद कोरोना का भी बन चुका होता। फिल्म और जिंदगी में यही फर्क है। कुछ और छोटी छोटी कमियाँ हैं। जैसे एक व्यक्ति अपने बीमार भाई को क्वारांटीन से लेकर चला जाता है और दरवाजे पर खड़े फौजी गार्ड उसे बस देखते रहते हैं। जब डॉक्टर उन्हें बताता है कि क्या हुआ है तब वो हरकत में आते हैं।
कहानी के मूल में साँप हैं जो कि भयावह माहौल उत्पन्न करते ही हैं। बीच बीच में इनके काफी शॉट्स हैं जो कि डरावने भी हैं और रोमांचकारी भी। वैसे भी इन लिसलिसे जीवों को देखकर ही मन अजीब सा हो जाता है। फिर इन्हें फुंफकारते हुए देखना तो एक अलग अनुभव है। फिल्म में यह साँप ऐसे ऐसे कोनो में मौजूद दिखाए जाते हैं कि मुझे लगता है कि फिल्म खत्म होने के बाद आपको भी अपने घर के कोनो को एक बार चेक करने की आवश्यकता महसूस होगी ही।
कित्ता क्यूट है न! |
कहानी में डॉक्टर हेनिंग और डॉक्टर एडमंटन के बीच का रिश्ता भी एक प्लाट पॉइंट है। इन दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया है और कस्बे के सभी लोगो को यह पता है। वह चाहते हैं ऐसा न हो लेकिन कई बार महत्वकांक्षाएं रिश्तों की बलि ले लेती हैं। यही इन दोनों के साथ होता है। एडमंटन एक छोटे कस्बे में रहकर अपनी ज़िन्दगी नहीं गुजारना चाहती। वो कुछ बड़ा करना चाहती है। वहीं हेनिंग कस्बे में रहने में खुश है। इसी बात के चलते दोनों में अलगाव होता है। यह थीम कई बार हम देख चुके हैं लेकिन अभी भी उतना ही प्रासंगिक है। इस त्रासदी से इनके रिश्ते में क्या असर पड़ता है वह भी दर्शाया गया है।
ब्योरोक्रेसी कैसे अपनी गलतियों को सुधारने के लिए कुछ जानों की परवाह नही करती यह देखना भी रोचक है।
कहानी अंत तक रोमांच बनाये रखती है। अंत में निर्देशक ने सीक्वल के लिए भी जगह छोड़ी है तो यह देखना बनता है कि इसका सीक्वल बना है या नहीं। बना होगा तो देखने में मजा आयेगा।
चूँकि कहानी वायरस से जुडी है तो कहानी में एक प्रसंग लॉक डाउन का भी है। मिलिट्री कस्बे में आ जाती है और सभी को लॉकडाउन में रहने का निर्देश दिया जाता है। हम सभी आजकल लॉक डाउन में चल रहे हैं। ऐसे में इसे देखना अजीब था। हमारे यहाँ हालत इतने खराब नहीं है। मिलिट्री का आना जरूरी नहीं हुआ है। लेकिन फिर भी जैसा डर, जैसी भगदड़ इस फिल्म में कुछ लोगों द्वारा करते हुए दिखाई गयी है उसे हम भी देख चुके हैं। कहते हैं फिल्म और साहित्य समाज को ही प्रतिबिम्बित करते हैं लेकिन इस फिल्म को देखते हुए मेरे दिमाग में यह ख्याल आया कि कुछ समय पहले आई यह फिल्म एक तरह से भविष्य ही तो नहीं दर्शा रही थी।
वेनमस मुझे रोचक लगी। फिल्म काफी कम बजट में बनी है यह तो देखने से भी पता चल जाता है। इस हिसाब से कुछ कुछ कमियाँ हैं लेकिन मैं उन्हें देखते वक्त नजरंदाज कर देता हूँ।
यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है।
अगर आपने इस फिल्म को देखा है तो आपको यह कैसी लगी? मुझे कमेन्ट करके बताइयेगा।
जी आभार….
बहुत अच्छी पोस्ट है। फिल्म को देखने इच्छा और प्रबल हो गई। शुक्रिया आपका ।