आशा के सुनहरे नग़में (Asha Bhosle’s golden songs)

आशा भोंसले के सुनहरे नगमें
संगीत दुनिया की एकलौती ऐसी विधा है जिसने न केवल देवों को अपनी मधुरता से जोड़े रखा, वरन पृथ्वी लोक पर भी अपनी सुरम्य धार से सबको सराबोर किया है । ऐसा कोई प्राणी नहीं है, कोई जीव नहीं है जो संगीत से अछूता रहा हो। किसी ना किसी रूप में इन सब ने  ख़ुद को संगीत के नाम किया है। फिर वो चाहे भावनाओं को प्रकट करना हो , खुशियों को बाँटना हो , दुख व्यक्त करना हो या प्यार के नए रास्ते बनाना हो, हर रूप में संगीत समाहित है। युगों- युगों से संगीत का परचम पूरे ब्रह्माण्ड पर लहराता रहा है। हर नृत्य, हर शब्द, हर बोली-भाषा में संगीत निहित है। बदलते वक़्त के साथ भले संगीत सुरों से मिलकर अपनी सूरत (रूप) बदलता आया हो  पर अपनी सीरत (आंतरिक मन) की लौकिकता इसने कभी मिटने नहीं दिया है।  धरती के कण-कण में संगीत रमा है, रग-रग संगीत से सजा है। यही संगीत पूरी प्रकृति में विचरण करता है। ये संगीत कभी धार बनके कल -कल बहता है और कभी कोयल के गले में वास कर उसे जहाँ से अलग बनाता है।  कुछ भी कहो इसके साथ जीने का आनंद ही कुछ और है।

 

अगर मैं अपनी बात करूँ तो मेरा हर वो पल सुकून से भरा होता है जब मैं इसकी गोद में सोती हूँ और ये मुझे किसी आवाज़ के रूप में लोरियाँ सुनाता है। जब -जब इसकी गूँज मेरे कानों में पड़ती है तब तब मेरा पूरा तन मन सुर सज्जित हो जाता है। अगर मैं कहूँ कि, मेरी रात मेरी सुबह बिन गीत संगीत नहीं होती है तो गलत नहीं होगा। मैं ये तो नहीं कहूँगी कि संगीत हर गले में निवास करता है लेकिन उसे, सुनने समझने, कहने और अनुभव करने की कला सबकी अपनी होती है। मैं कोई संगीत में पारंगत नहीं हूँ क्योंकि सीखने का कभी मौक़ा मिला नहीं। फिर भी मुझे गुनगुनाना पसंद है। मेरा मानना है संगीत गायन दिल से होता है। हमारे सुख -दुःख का साथी होता है।

आप भी सोच रहे होंगे मैं आज संगीत का ज्ञान क्यों बाँटने लगी। दरअसल बात बस इतनी सी थी कि कोई पुराना गीत मेरे ख़यालों में दस्तक दे गया। और मेरी ज़बाँ उसे गुनगुनाए बगैर नहीं रह पाई। उस गीत के बोल कुछ यूँ थे-

“आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू।जो भी है बस यही इक पल है”



ये गीत जिस शख़्शियत ने  गाया है उनकी आवाज़, उनके अंदाज़ की तो मैं दीवानी हूँ। इसलिए मैंने सोचा क्यों ना आज उन्हीं से आपको इस पोस्ट के जरिए रूबरू करा दूँ। उनके नग़मों से आपकी यादें ताज़ा कर दूँ।  ले चलूँ आपको उस पुराने दौर में जहाँ आपने इन गीतों में ख़ुद को तलाशा होगा ।

तो चलिए! तो शुरू करते हैं यादों का ये संगीतमय सफर कुछ सुहाने मदभरे गीतों के साथ। उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातों के साथ।  ताकि आप उनसे उनके नग़्मों के जरिये, उनसे जुड़े कुछ क़िस्सों के जरिये रूबरू हो सकें।

पर्दे पर दिखने वाले लोगों की शक़्ल अलग होती है और पर्दे के पीछे उनका चेहरा कुछ और ही कहता है….बहुत कम लोग एसे होते हैं जिनके दोनों चेहरे एक ही कहानी बयाँ करते हैं।  दिल में  भरपूर जिंदगी, चेहरे पे हमेशा एक मुस्कराहट, आवाज़ में मधुरता ,चंचलता और अमृत । ये ख़ास ख़ूबियाँ उस महान  गायिका की हैं जिनको इंट्रोड्यूस करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। आप ऐसा भी कह सकते हैं कि शब्दों के जरिये मैं उन ख़ूबियों की गिनती नहीं करना चाहती हूँ। वो कोई और नहीं , हम सबके दिलों पे राज करने वाली दि लीजेंड  ‘आशा बोंसले’ जी  हैं,  जिन्हें हम सब प्यार से ‘आशा ताई’ के नाम से बुलाते हैं। आशा जी मेरी आईडल ही नहीं है, उससे भी कई ज्यादा हैं। इन्होंने  संगीत को एक नई परिभाषा दी है उसे नए आयाम तक पहुँचाया है। मैं उनकी गायिकी, उनके अंदाज़ की और उनके जज़्बे तीनों की सबकी फैन हूँ।  इनके गीतों में मुझे एक जुड़ाव मेहसूस होता है।  एक अपनापन मुझे इनकी तरफ खींचता है।  इसलिए भी मैं खुद को आशा जी के बहुत क़रीब पाती हूँ।  अगर मैं ये कहूँ कि अभी यह लिखते लिखते ही इनका गाया एक गीत मेरे जहन में दस्तक दे रहा है। आप यक़ीं नहीं कर पायेंगें। लेकिन ये सच है।  ये गीत  1987 में आई फिल्म इजाज़त का है। रेखा और नसीरुद्दीन पर फिल्माया गया ये गीत बेहद रोमांटिक है। रेखा की ख़ूबसूरती और नसीरुद्दीन का भोलापन दोनों ही इस गीत में झलक रहे हैं।  फिर आर. डी.  बर्मन साहब के संगीत और आशा भोंसले जी की आवाज़ ने इसे गीत को और रूहानियत से भर दिया है।   गीत के बोल कुछ यूँ हैं।

“कतरा कतरा मिलती है। कतरा कतरा जीने दो। । 
 ज़िंदगी है बहने दो। प्यासी हूँ मैं प्यासी रहने दो”

हिंदी फिल्म गीतों में चुलबुलेपन, ग्लेमर और एक शोख अंदाज की जब बात आती है तो सबसे ज्यादा चुलबुली ,नटखट ,शरारत भरी आवाज़ की मालकिन, आशा भोंसले जी  का नाम सबसे शीर्ष पर आता है।आशा जी का जन्म 8 सितम्बर 1933 को महाराष्ट्र के सांगली जिले मैं हुआ । इनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध रंगमंच अभिनेता और शास्त्रीय गायक थे । इनके पिता ने  शास्त्रीय संगीत की शिक्षा काफी छोटी उम्र मे ही आशा जी को दी। जब आशा जी केवल 9 वर्ष की थीं तब इनके पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद इनका परिवार पुणे से कोल्हापुर और उसके कुछ समय बाद मुंबई आ गया। इनके परिवार के पास चूँकि आजीविका का कोई साधन नहीं था तो परिवार  की सहायता के लिए आशा जी और इनकी बड़ी बहन लता मंगेशकर जी ने गानें गाना और फिल्मों मे अभिनय करना शुरू कर दिया।  इनका बचपन संघर्षों और जिम्मेदारियों से घिरा रहा।

आशा ताई ने फिल्मी और गैर फिल्मी लगभग 16 हजार से भी ज्यादा गाने गाये हैं और इनकी आवाज़ के प्रशंसक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। आशा जी की विशेषता यह है कि इन्होंने शास्त्रीय संगीत, गजल और पॉप संगीत हर क्षेत्र में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है। यही इनकी खूबी है कि इन्होंने सबमें एक समान सफलता पाई है। जैसे कभी संगीत को किसी दायरे में नहीं रखा जाता है वैसे ही इन्होने कभी अपनी गायकी को एक दायरे में सीमित नहीं रखा ।

जब किसी के करियर की बात होती है तो सबसे पहले ज़िक्र होता है उतार चढ़ाव का । यह उतार चढ़ाव हर किसी की ज़िंदगी का हिस्सा है। हम सभी इससे गुज़रते हैं।  यही सब आशा जी ने भी किया ।

जब आशा जी ने फिल्मों मैं गाने की सोची, तब गीता दत्त ,शमशाद बेग़म और लता जी का ज़माना था । वो अपनी गायिकी का परचम लहरा चुके थे। हर फिल्म में इनकी आवाज़ होती थी। आशा जी के  लिए ये चुनौतियाँ पर्वत बनकर खड़ी होती गईं। उनको बॉलीवुड में गाने का कोई मौका नहीं मिला । बड़ी बहन “लता मंगेशकर” जी का रुतबा लेकर वो आगे नहीं बढ़ना चाहती थी। वो अपनी गायिकी से लड़ती रहीं। अपनी किस्मत से भिड़ती रहीं। फिर उन्होंने ठान लिया की, उनको अपने दम पर आगे बढ़ना है । उन्हें जो काम मिला, वो करती गई और छोटे मोटे किरदारों के लिए  गाती गई । हर काम को पूजा की तरह आशा जी ने अपना कर्म समझ कर उसकी आराधना की। उनका कहना है उनको आगे बढ़ने का मौका किसी ने नहीं दिया । किसी ये नहीं कहा कि  इसको ये गाना दे दो । जैसे मैं अपनी आईडल आशा जी को मानती  हूँ और उनको सुन-सुन कर मैं संगीत की  तरफ खिंची जाती हूँ। उनका कहना है कि उनका कोई आईडल नहीं है। उनका कोई गॉड फ़ादर नहीं है जिसने उनको आगे बढ़ाया हो। उन्होंने हर मुश्किल का सामना ख़ुद  किया और अपनी मंजिल ख़ुद  बनाई।  अपने दम पर खड़ी रहकर पाई इस मंजिल पर जब इनकी आवाज़ का जादू चला तो हर कोई बस देखता रह गया।

आशा जी की ज़िंदगी पर फिट बैठता एक गीत है जो मुझे याद आ रहा है। इस गीत को उन्होंने ही अपनी आवाज़ से सजाया है। फिल्म ‘लूटमार’ के इस  गीत ने कई जवाँ दिलों पर राज किया है। और उसी के साथ सुनिये फिल्म ‘शिकार’ का एक और प्यार भरा गीत “पर्दे में रहने दो “ इन गीतों में आपको  महसूस होगा ऐसी खनकती रंगत, जो कई शोलों को भड़का दे। अंदाज़ ऐसा जो लाखों को दीवाना बना दे। मदहोशी ऐसी जो नशे में डूब कर पागल कर रही हो। उफ्फ़ क्या गीत थे ये। सुनना चाहेंगे आप? तो लीजिए सुनिए और खो जाईए इसन गीतों  में।

“ जब छाए मेरा जादू…… कोई बच ना पाए”




“पर्दे मैं रहने दो, पर्दा ना उठाओ” (शिकार)

शादी हर किसी के जीवन का एक अहम पड़ाव होता है। लेकिन पुराने दौर में शादी का उम्र से कोई लेना देना नहीं होता था। छोटी उम्र में शादी कर लेना एक रिवाज होता था। और जब बचपन संघर्षों से घिरा हो तो हर बात ध्यान में रखनी पड़ती है। यही सोचकर आशा जी ने भी मात्र 16 वर्ष की उम्र मैं  गणपत राव से शादी कर ली थी। शायद आपको मालूम नहीं होगा कि गणपत राव इनकी बहन लता जी के निजी सचिव थे । शादी हो तो गई मगर ये शादी ज्यादा टिक ना पाई और आशा जी सब छोड़ छाड़ कर अपने मायके आ गई | इनका मानना है कि जब सब साथ छोड़ दे तब भगवान् साथ देता है। और हुआ भी यही धीरे धीरे उनकी गायकी को मौका मिलने लगा। मगर  इनको हर जगह तुलना के तराजू मैं तोला गया ।  बी और सी ग्रेड की फिल्मों मैं गाने के बाद भी इन्हें हिन्दी फिल्मों में केवल  एक-एक गानों को गाने का मौक़ा मिलता था।

1943 में इन्होने अपनी पहली मराठी फिल्म ‘माझा बाल ’ में गीत गाया। यह गीत ‘चला चला नव नव बाला’  दत्ता दवाजेकर के द्वारा संगीतबद्ध किया गया था।  पहली बार आशा जी ने हिंदी फिल्मों में  1948 में फिल्म ‘चुनरिया’ का गीत “सावन आया” गाया । 1952 मे दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म ‘संगदिल’ जिसके संगीतकार सज्जाद हुसैन थे, ने आशा जी को प्रसिद्धि दिलाई। जिसके परिणाम स्वरूप ‘विमल राय’ ने एक मौका आशा जी को अपनी फिल्म ‘परिणीता’ के लिए दिया । राज कपूर ने गीत ‘नन्हे मुन्ने बच्चे’ के लिए मोहम्मद रफी के साथ फिल्म ‘बुट पॉलिश्’ के लिए आशा जी को मौका दिया । इस गीत ने आशा जी को काफी प्रसिद्धि दिलाई। उस वक़्त बच्चे- बच्चे की ज़बाँ पर यही गीत होता था। आज भी हर माँ प्यार से इस गीत को लोरी के रूप में अपने बच्चों को सुनाती है।

एक बार आशा जी स्टूडियो में  एक गीत छम छमा छम रिकार्ड कर रहीं थी । उसी दौरान ओ .पी नय्यर साहब वहाँ पहुंचे और उन्होंने आशा जी को गाते सुना। उनको आशा जी की आवाज़ बहुत भा गई । फिर क्या था उन्होंने अपनी फिल्म सी .आई .डी.  में आशा जी को  गाने का मौक़ा दे दिया। बेहद खूबसूरत ये गीत जिसे आशा जी के साथ साथ शमशाद बेगम और मोहम्मद रफ़ी साहब ने गाया था। फिर ओ.  पी.  नय्यर और आशा जी ने लम्बे समय तक साथ काम किया। इन्हीं की साझेदारी ने आशा भोसले जी को एक खास पहचान दिलाई । पहली बार जिस जोड़ी के साथ इनकी पहचान बनी वो ओ .पी नय्यर साहब ही थे । इन दोनों ने मिलकर कई यादगार फ़िल्में दी।  “हावड़ा ब्रिज, मेरे सनम, तुमसा नहीं देखा ,एक मुसाफिर एक हसीना और कश्मीर की कली” ये ऐसी फ़िल्में हैं जिन्होंने इन दोनों को बुलंदियों तक पहुंचा दिया दिया था । इन फिल्मों के ज़रिये ही आशा जी ने अपना मु क़ाम तय कर लिया । और फिर कभी पलटकर पीछे नहीं देखा । अब वो एक ऐसी  सिंगर बन गयी थी जो किसी को भी टक्कर दे सकती थी।

फिल्म सी.  आई.  डी. और हावड़ा ब्रिज के ये गीत जो कि मुझे बहुत पसंद है। एक बार सुनिएगा जरूर।  सी.  आई.  डी. के इस गीत में देव आनंद साहब का प्यार-ए-अंदाज़-ए-बयाँ  इतना खास था कि ये गीत सुपर हिट तो हुआ ही था। साथ ही  कई सालों बाद इसका रीमिक्स भी बना था। इस गीत में आशा जी ने अपनी आवाज़ की मधुरता से शमशाद बेग़म जैसी मशहूर गायिका को टक्कर देने की पूरी कोशिश की है।  इस गीत के बोल अपने आप में किसी जादू से कम नहीं थे। और हावड़ा ब्रिज में मधुबाला की ख़ूबसूरती ने सबको घायल किया हुआ था।  ऐसी ख़ूबसूरती न थी न है न कभी दिखेगी.

“ओ लेके पहला पहला प्यार भरके आँखों में ख़ुमार”



“आइये मेहरबाँ ” …(हावड़ा ब्रिज)

जब भी आशा भोंसले जी की गायकी की बात आती है तो पंचम दा यानी आर .डी .बर्मन साहब का नाम भी खुद ब खुद ही चला आता है । यूँ तो आशा जी ने कई संगीतकारों के साथ काम किया पर पंचम दा ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने आशा जी के साथ सबसे ज्यादा काम किया। काम करते -करते इन दोनों की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि, इन्होने इस रिश्ते को शादी में बदल दिया। लेकिन शादी के बाद भी  इन दोनों ने अपनी दोस्ती को हमेशा कायम रखा।

आशा जी पंचम दा से उस वक़्त मिली जब इनको सबसे ज्यादा सहारे की जरुरत थी। इनके साथ इनकी साझेदारी फिल्म तीसरी मंजिल मैं पहली बार लोगों का ध्यान आकर्षित कर पायी । आशा जी ने आर. डी. बर्मन के साथ “कैबरे, रॉक, डिस्को, गज़ल, भारतीय शास्त्रीय संगीत” और भी बहुत गीत गाए । पंचम दा इनके साथ पति कम, दोस्त बनकर ज्यादा रहते थे । जब भी आर. डी.साहब कोई गाना बनाते थे। तो आशा जी से जरुर पूछते थे। अगर आशा जी ने किसी गीत के लिए मना कर दिया तो कहते थे-

 “अच्छा तुझे पसंद नहीं है? ठीक है दूसरा बनाता हूँ” 

जो गाने आशा जी को पसंद नहीं होते थे तो पंचम दा कह देते थे कि ये गाना इसको मत दो,  नहीं गा पायेगी।  एक बार क्या हुआ कि  आशा जी ने पंचम दा से कहा –

“आप अच्छे-अच्छे  गाने मुझे नहीं, दीदी को दे देते हो” 

तो जवाब मिला –

“ उनका गाना अलग है तुम्हारा अलग। उनकी आवाज़ अलग है तुम्हारी अलग। अगर तुम कहो कि तुम्हे ‘पिया तू अब तो आजा’  नहीं गाना है तो मैं एसे गाने बनाना ही छोड़ दूँगा । क्योंकि ऐसे  गाने सिर्फ तुम ही गा सकती हो और कोई नहीं”। 

“पिया तू अब तो आजा”

 
 

इन दोनों से जुडी एक दिलचस्प बात मैं आपको बताती हूँ। आशा जी को सफाई का बहुत शौक था। लेकिन यही शौक़ पंचम दा को बहुत परेशान कर देता था। फिर भी  वो कह नहीं पाते थे । एक बार क्या हुआ कि  पंचम दा ने आशा जी तक अपनी नाराजगी पहुँचाने का एक नायब तरीका ढूँढ निकाला । इनके जन्मदिन पर पंचम दा ने एक झाड़ू लिया और उसके इर्द गिर्द ढेर सारे फूल लगा दिए। चांदी के वर्क से उसे कवर कर दिया । फिर सीधे जाकर आशा जी को कहा ‘ हैप्पी बर्थडे आशा’ जब आशा जी ने वो गिफ्ट खोला और देखा कि  बीच में  झाड़ू है तो वो हँस-हँस  के बेहाल हो गई। और गिफ्ट में मिले उस झाड़ू को भी दिल से स्वीकार कर उन्होंने अपना जन्मदिन मनाया। इन दोनों की जुगलबंदी के दो प्यार भरे नगमें मैं आपके लिए लेकर आयी हूँ। यह गीत फिल्म तीसरी मंजिल से ओ मेरे सोना रे और सनम तेरी क़सम फिल्म से कितने भी तू कर ले सितम हैं। एक बार सुनकर देखिए। मन नई तरंगों के साथ खिल उठेगा। और हाँ, अगर आपसे कोई रूठ गया है तो उसे इन गीतों के जरिए मनाईये। अगर ना माने तो कहिएगा।

“ओ मेरे सोना रे सोना रे” 



“कितने भी तू कर ले सितम”(सनम तेरी कसम)

आशा जी कहती हैं कि उन्होंने सबसे ज़्यादा ड्युईट्स किशोर कुमार के साथ गाये हैं।  रिकॉर्डिंग के दौरान इन दोनों में कई बार मन मुटाव भी हो जाता था। लेकिन फिर दोनों एक दूसरे के बिना रह भी नहीं  सकते थे।

दीवार’ फिल्म का इनका ये गीत जो शशि कपूर और नीतू सिंह पर फिल्माया गया है उस दौर में लगभग हर प्रेमी की ज़बाँ पर छाया रहता था। आज भी इसकी धुन कानों में पड़ते ही मन खिला-खिला सा हो जाता है। गुनगुनाए बगैर दिल रह नहीं पाता है । इस गीत को सुनिए । इसी गीत बहाने मैं भी अपने दिल का हाल आपको सुना रही  हूँ ।आप भी सुनिए इस क्या पता आपकी यादें भी आपको कुछ कह जाए?

“कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ । दिल में मेरे आज क्या है।”

 
 

आशा जी ने फिल्म के गीतों को गाने में जितनी सफलता पाई है उतनी ही सफलता से उन्होंने ग़ज़ल गायिकी भी की है।  जगजीत सिंह , ग़ुलाम अली साहब के साथ आशा जी का ग़जलों का सफ़र भी बेहद ख़ूबसूरत रहा । आशा जी ने ये बात एक रियलिटी शो मैं कही थी कि जगजीत सिंह के साथ उन्होंने सबसे ज्यादा ग़जलें गाई है । और ये बात कहते हुए उनकी आँखें नम हो गई थी। जब ग़जलों की बात आती है तो हम फिल्म “उमराव जान” को केसे भूल सकते हैं । ये वो आवाज़ है जो इस फिल्म के ग़ज़लों के जरिये उनको  नेशनल अवार्ड तक खींच ले गई।  ख़य्याम”,जो इस फिल्म  के म्यूजिक डायरेक्टर थे, के साथ आशा जी की साझेदारी की ये सबसे यादगार फिल्म थी । इस फिल्म के गीतों के जरिये उन लोगों को इनकी आवाज़ का लोहा मानना पड़ा, जिन्होंने कभी आशा जी को आगे बढ़ने से रोका था । अब ग़ज़लों की बात आ ही गयी गई है तो क्यों न उनकी कुछ चुनिंदा ग़ज़लों को सुन लिया जाए।  ये ग़ज़लें मुझे तो पसंद है हीं साथ ही आशा करती हूँ आपको भी जरूर पसंद आएगी।

“इन आँखों की मस्ती के दीवाने हज़ारों हैं”


“सलोना सा सजन है और मैं हूँ” (आशा भोंसले)



“गए दिनों का सुराग लेकर”(आशा और ग़ुलाम अली)

आशा जी अच्छी गायिका तो हैं ही लेकिन इसके अलावा भी उनके अन्दर काफी दूसरी खूबियाँ हैं। आशा जी जितना अच्छा गाती है उतनी ही अच्छी कुकिंग भी करती हैं।

बॉलीवुड के बहुत सारे लोग आशा जी के हाथों से बनें ‘कढ़ाई गोश्त’ एवं ‘बिरयानी’ के लिए इनसे फरमाईशें करते है। एक बार जब ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ के एक साक्षात्कार मे पूछा  गया कि यदि आप गायिका न होती तो क्या करती? तब आशा जी ने जबाब दिया कि “मै एक अच्छी कुक बनती”। आशा जी एक  रेस्त्रां संचालिका भी है। इनके रेस्त्रां दुबई और कुवैत में आशा नाम से प्रसिद्ध है। इनके टैलेंट के ना जाने कितने किस्से हैं । इनका एक और टैलेंट साल 2013 में तब सबके सामने आया जब इन्होने अपनी फिल्म “माई” मैं अभिनय किया । सिंगिंग, कुकिंग,और एक्टिंग आशा जी किसी मैं पीछे नहीं रही। और हर बार वो अपने किसी ना किसी अंदाज से हम सबको रूबरू करवा देती हैं।

आशा जी के विषय में बातें अगर शुरू करूँ तो खत्म होने का नाम नहीं लेती हैं। कई बातें फिर भी रह जाती हैं। बहुत से अनछुए किस्से और भी होंगे जिनसे न मैं वाकिफ हूँ न आप।  मेरा मकसद सिर्फ इतना था कि मैं आपको आशा जी के जरिए उस सुनहरे संगीतमय दौर में ले चलूँ जहाँ गीतों में रस टपकते थे, भाव उमड़ते थे, जज़्बातों की मंज़िले बनती थी, प्यार की लहरें उठती थी, शोख़ी और शर्म की नज़ाकत आपस में मेल खाती थी।  एक अद्भुद संगम होता था जिसे याद करके आज भी मन उतावला हो जाता है। बावरा हो जाता है इन गीतों में झूम जाने के लिए।

अगर मैं उनके गाये सभी गानों की बात करूँ तो एक दिन में वो बातें खत्म नहीं होंगी। इन गीतों की संख्या इतनी हैं कि हर गीत का जिक्र इस पोस्ट में करना मुझे मुनासिब नहीं लगता है। इससे पोस्ट बहुत लंबी हो जायेगी। इसलिए मैंने अपनी पसंद के कुछ गीत चुनकर यहाँ आपके लिए रखें हैं। एक बार सुनिएगा जरूर ।

“झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में” (मेरा साया)


“ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना” (सिंकन्दर)



“तू तू है वही , सील ने जिसे अपना कहा” (वादा रहा)


“चुरा लिया है तुमने जो दिल को” (यादों की बारात)


“मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है” (इजाज़त) 



मैं उम्मीद करती हूँ आज की ये पोस्ट आपको पसंद आई होगी। गीतों का ये गुलदस्ता जो मैं चुनकर आपके लिए लाई थी उसे आपने स्वीकार किया होगा। अपनी यादों को तरोताजा किया होगा। किसी पुराने खयाल ने आपको आपसे मिलाया होगा।

और हाँ इस पोस्ट में ही आशा जी के कुछ इंटरव्यूस डाल रही हूँ।  कहीं पर भी अगर आपको कोई शंका हो तो एक बार इंटरव्यू जरूर सुन लीजियेगा।

 

इस पोस्ट के विषय में आप अपनी राय और सुझाव मुझे कमेन्ट करके जरूर बतायें । साथ ही आप आशा जी के गाये अपने पसंदीदा गीत को मुझसे साझा कीजियेगा

लेखिका – सुजाता देवराड़ी


सुनते रहिए, गुनगुनाते रहिए, मस्त रहिए और स्वस्थ रहिए। 

जीना इसी का नाम है। 


आप मुझसे इस आईडी पर संपर्क कर सकते हैं.
sujatadevrari198@gmail.com
 

© सुजाता देवराड़ी

 

 

About सुजाता देवराड़ी

सुजाता देवराड़ी मूलतः उत्तराखंड के चमोली जिला से हैं। सुजाता स्वतंत्र लेखन करती हैं। गढ़वाली, हिन्दी गीतों के बोल उन्होंने लिखे हैं। वह गायिका भी हैं और अब तक गढ़वाली, हिन्दी, जौनसारी भाषाओँ में उन्होंने गीतों को गाया है। सुजाता गुठलियाँ नाम से अपना एक ब्लॉग भी चलाती हैं।

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