अकेलेपन, दुःख, दोस्ती और उम्मीद को दर्शाती एक खूबसूरत सीरीज
यूट्यूब में घूमते घामते अक्सर काफी कुछ देखने को मिल जाता है। कभी ये स्किट्स की शक्ल में होता है और कभी कॉमेडी वीडियोस की शक्ल में है। अक्सर यही चीजें हमारा ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं और हम भी इनमें ही लगे रहते हैं। लेकिन इन सबके अलावा यू ट्यूब में आपको भूले बिसरे ऐसे कई खूबसूरत धारावाहिक देखने को मिल जाते हैं कि जब आप इनसे टकराते हैं तो अचरज में पढ़कर आपके मुख से बस यही निकलता है – “मैं अब तक इसके होने से नावाकिफ कैसे था?”
यू ट्यूब श्रृंखला के तहत मैं अपने पंसदीदा ऐसे ही धारवाहिकों के विषय में आपको बतलाऊँगा। हो सकता है आपने इन्हें देखा हुआ हो या आप भी मेरी तरह पहली बार इनसे वाकिफ हो रहे हों।
इस श्रृंखला की पहली कड़ी के तौर पर मैं आपके सामने जिस धारवाहिक को ला रहा हूँ वो है रस्किन बांड की कहानियों पर आधारित धारावाहिक ‘एक था रस्टी‘। रस्किन बांड अंग्रेजी के ऐसे लेखक हैं जिनके नाम से शायद हर कोई वाकिफ होगा। अगर आपने उन्हें पढ़ा नहीं है भी तो भी उनके विषय में सुन जरूर रखा होगा। वहीं अगर आपने उन्हें पढ़ा है तो आप रस्टी से वाकिफ जरूर होंगे। अगर आप रस्टी को नहीं जानते हैं तो मैं बता दूँ कि रस्किन बांड ने अपने जीवन को आधार बनाकर एक किरदार रस्टी की रचना की थी। इसी किरदार को केंद्र में रखकर उन्होंने अपना पहला उपन्यास द रूम ऑन द रूफ और काफी कहानियाँ भी लिखीं। इन्हीं कहानियों में से कुछ को ‘एक था रस्टी‘ में फिल्माया गया है। इस धारावाहिक के तीन सीजन हैं। अभी फिलहाल मैंने एक था रस्टी का पहला सीजन ही देखा है और इस लेख में मैं इस पहले सीजन की ही बात करूँगा।
एक था रस्टी की निर्मात्री और निर्देशिका सुभदर्शनी सिंह हैं। इसका पहला सीजन 1930 के दशक की कहानी बताता है। 1930 के देहरादून और मसूरी को इसमें दर्शाया गया है। यह वह वक्त था जब अंग्रेजों का भारत पर राज था लेकिन इन कहानियों में इस बात का खाली जिक्र आता है। चूँकि यह कहानियाँ एक नौ वर्षीय बालक की नजर से लिखी गयी है और उसके परिवेश को दर्शाती हैं तो यहाँ एंग्लो इंडियन किरदार तो हैं लेकिन वह आम से लोग हैं जो कि आम से काम करते हैं। कोई बच्चों को पढ़ाता है तो किसी का ब्यूटी पार्लर है तो कोई विदेशियों के लिए गाइड का काम करता है। इधर वो क्रूर अंग्रेज नहीं हैं जिनसे अक्सर स्वतंत्रता से पहले के समय की फ़िल्में भरी पड़ी रहती हैं। यह रस्टी और उसके आस पास के लोगों की ही कहानी है।
‘एक था रस्टी‘ के हर एपिसोड की एक खासियत यह भी है कि हर एपिसोड की शुरुआत में हमे रस्किन बांड के विचार भी जानने को मिलते हैं। यह आने वाले एपिसोड के लिए एक तरह की भूमिका का भी काम करता है। यह छोटा सा हिस्सा लेखक की सोच, उनकी जीवनशैली और उनके जिंदगी जीने के फलसफे को दर्शाने का काम भी करता है। अगर आप मेरी तरह रस्किन की लेखनी के प्रशंसक हैं तो आपको भी यह हिस्सा बेहद पसंद आएगा। आप खुद को उनके और नजदीक पाएँगे।
कहानी की बात करूँ तो ‘एक था रस्टी‘ रस्टी बांड की कहानी है। इस धारावाहिक में रस्टी बांड के किरदार को पर्दे पर जारुल आहूजा ने निभाया है। रस्टी एक नौ वर्षीय एंग्लो इंडियन लड़का है। धारावाहिक के पहले एपिसोड में हम जानते हैं कि रस्टी अपने पिता के साथ मसूरी के राजा के घर में रहता है। उसके पिता राजा के बेटों को पढ़ाते हैं जिसकी एवज में राजा साहब उन्हें घर, नौकर चाकर और तनख्वाह देते हैं। रस्टी की जिंदगी अपने पिता और इस राजसी माहौल में ही गुजरती है। यहाँ उसे कई रोचक किरदार जैसे राजा की बहन, माली, जिसका नाम दुखी है, आया इत्यादि मिलते हैं।
लेकिन फिर रस्टी की जिंदगी में एक बदलाव आता है। एक झटका आता है। यह झटके रस्टी को आने वाले समय में कई बार लगते हैं। दुःख और अकेलेपन से यह बच्चा कई बार गुजरता है। अपनो को खोने का दुख वह झेलता है। इस कारण जो बदलाव उसके जीवन में आते हैं उनसे वह जूझता है। जब वह चलते हुए चिल्लाता है कि कोई है मुझसे ज्यादा उदास और अकेला इस मसूरी में तो आपका मन करता है आप उठे और उसे गले लगाये और बोले कि मैं हूँ तुम्हारे साथ बच्चे। आप उसके लिए दुखी होते हैं। लेकिन कहानी आगे बढ़ती है तो आप देखते हैं कि रस्टी में जीवटता है। इस कथन के बाद ही उसे ऐसा किरदार मिल जाता है जो शायद उससे ज्यादा अकेला और उदास था और वो दोनों एक दूसरे के मित्र बन जाते हैं। यह श्रृंखला ऐसे ही रोचक किरदारों से भरी पड़ी है। रस्टी इन किरदारों से टकराता है और इनसे एक रिश्ता कायम कर देता है। वह इन किरदारों से कुछ सीखता है, कुछ उन्हें सिखाता है और उन्हें अपने साथ लेकर आगे बढ़ता है। वह उनके दुःख के आगे अपना दुःख भूल जाता है। उनकी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी ढूंढ लेता है और इस तरह अपने दुखों से उभर जाता है। रस्टी के जीवन में एक तरह का अकेलापन जरूर है .लेकिन अक्सर नये नये दोस्त भी बना देता है। उसके इन दोस्तों में जहाँ एक तरफ उसकी उम्र के मनी, सोमी, विजू, दलजीत सिंह शामिल हैं वहीं दूसरे ओर उससे उम्र में बड़े माली, ड्राईवर बंसी और बेहद बुजुर्ग मिसेज मकेंजी भी उसकी प्रिय मित्रों में शामिल हैं। इन दोस्तों के चलते उसकी जिंदगी में रोमांच की भी कभी कमी नहीं रहती है। और इन्ही रोमांचक कारनामों में वो जिंदगी के कई जरूरी पाठ भी पढ़ लेता है। एक एपिसोड में रस्टी की माँ कहती है: अगर रस्टी के दोस्तों के विषय में लिखने लगो तो एक उपन्यास बन सकता है। यह बात अतिश्योक्ति नहीं है।
एक था रस्टी का पहले सीजन में यूट्यूब में उन्नीस एपिसोड मौजूद हैं। वैसे तो इस सीजन में टोटल बीस एपिसोड हैं लेकिन पाँचवा एपिसोड यूट्यूब में मौजूद नहीं है। इन बीस एपिसोड्स में से सोलह सत्रह एपिसोड्स रस्टी के इर्द गिर्द ही घूमते हैं। इनमें उसके दोस्त हैं, उसके कुछ अजीब रिश्तेदार हैं, एक भूत और उसके द्वारा मचाया गया उत्पात है और साथ साथ में कहीं छुपा हुआ सतह के नजदीक मौजूद एक बच्चे का अकेलापन भी है। मुश्किल से मुश्किल घड़ी का सामाना करने के बाद भी जीवन का रस और आनन्द कैसे ले सकते हैं यह बात यह एपिसोड दिखाते हैं। रिश्तों की अहमियत इसमें दिखलाई जाती है। रस्टी और उसके सौतेले पिता के बीच के द्वंद भी इसमें दिखते हैं। यह टकराव आख़िरकार कैसे खत्म होता है यह देखना भी रोचक रहता है।
इस सीरीज के कुछ एपिसोड ऐसे हैं जिनके केंद्र में रस्टी नहीं है। इनके केंद्र में रस्टी के दोस्त या उन दोस्तों के जानकार हैं। इन एपिसोड्स में आप मनी, विजू और बिनिया से मिलते हैं। यह तीनों पात्र वो हैं जो आस पास के गाँव में रहते हैं। इन तीनों के माध्यम से पहाड़ की आर्थिक हालात, उधर के जीवन की परेशानियाँ और पहाड़ी लोगों की सरलता आसानी से ही दिख जाती है।
मनी की कहानी में हम देखते हैं कि कैसे एक तरफ पैसे की कमी के चलते उसकी दादी एक दस साल पुराने चश्मे से गुजारा कर रही है और दूसरी तरफ मनी को बचपन में ही काम की तलाश में देहरादून जाना पड़ता है। यह पलायन और आर्थिक तंगी आज भी पहाड़ और पहाड़ियों की नियति बना हुआ है। कुछ पढ़कर पहाड़ से निकलते हैं और कुछ मनी के जैसे बचपन में ही पहाड़ छोड़ कमाई के लिए चल पड़ते हैं। इसी एपिसोड में जब मनी की दादी का चश्मा आखिरकार ठीक होता है तो उनके चेहरे पर मनी को देखकर और आस पास के दृश्य को देखकर जो भाव उत्पन्न होते हैं वह मन को भिगा देते हैं। कई ऐसी चीजें हैं जो हमे आसानी से मिली हैं और हम उन्हें महत्वहीन समझते है। यह एपिसोड हमे उन चीजों पर गौर करने को प्रेरित करता है।
धारावहिक के दो चार एपिसोड विजू और उसकी बहन बिनिया पर है। पहाड़ी गाँव कैसे जंगली जानवरों से त्रस्त रहते हैं यह इसमें दर्शाया गया है। हाँ, यहाँ गलती जानवर की नहीं है बल्कि इनसानों की है। यह बात लेखक ने साफ़ इंगित की है। जब गाँव वाले आदमखोर बाघ की शिकायत लेकर कलेक्टर ऑफिस जाते हैं और उधर शिकारी की बात चलती है तो सभी एक साथ यही कहते हैं कि सारी परेशानी की जड़ शिकारी ही हैं। उधर उनका ध्येय यही होता है कि शिकारी अपने शिकार के चलते इन्हें बेदखल कर रहे हैं। प्रकृति के संतुलन बिगाड़ रहे हैं। और इस कारण बाघ भी जंगल से लोगों की बस्ती की तरफ जा रहे हैं। कहानी के आखिर में भी यही निकलता है। जिस बाघ ने लोगों को मारना शुरू किया था वो जब मारा जाता है तो पता लगता है कि उसके पैर में गोली लगी है। वह घायल था इसलिए आसान शिकार के चलते गाँव में हमला कर रहा था। इनसानी शौक कैसे संतुलन बिगाड़ रहे हैं इस बात को इस एपिसोड में दर्शाया गया है। बस नॉटिस करने की बात है। पहाड़ की जिंदगी की बाकी परेशानियों को भी इसमें देखा जा सकता है। विजू का पाँच मील चलकर स्कूल जाना, बाघ के कारण उसका पढ़ाई का हर्जा होना, बाघ के कारण कई लोगों का असमय घायल होना या मारा जाना और पहाड़ के गाँव के अधिकांश लोगों की लचर आर्थिक स्थिति इसमें दर्शाई गयी है। हैरत की बात यह है कि 1930 के दौर की कहानी और आज के पहाड़ की कहानी में ज्यादा फर्क नहीं है।
विजू और बिनिया की बात चली है तो बिनिया की नीली छतरी की भी बात कर लेते हैं। बिनिया की नीली छतरी रस्किन बांड की कहानी है जिसे इस सीजन में फिल्माया गया है। एक छतरी कैसे एक गाँव का आकर्षण का केंद्र बनती है यह इस कहानी में दिखता है। इसमें भी पहाड़ के लोगों के सरलता और उनकी आर्थिक स्थिति दिखती है। आप खुद सोच सकते हैं कि उन लोगों की आर्थिक हालत कैसी होगी जहाँ केवल एक नीली छतरी के चलते कोई आकर्षण का केंद्र बन जाये? इसी के साथ यह धारावाहिक बिनिया की सरलता और उसके बाल मन मी मासूमियत को भी दर्शाने का काम बाखूबी करती है। कहानी का अंत भी रोचक है। हमारी दया कैसे एक व्यक्ति का पूरा जीवन दर्शन बदल देती है इसे इसमें दर्शाया गया है।
यहाँ यह बात भी बताने लायक है कि रस्किन बांड की इसी कहानी के ऊपर विशाल भारद्वाज ने 2005 में एक फिल्म द ब्लू अम्ब्रेलाभी बनाई थी। इस फिल्म में पंकज कपूर और श्रेया शर्मा ने मुख्य भूमिका निभाई थी। इस फिल्म को 2007 में सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। यह फिल्म भी देखे जाने लायक है। अभी नेटफ्लिक्स पर मौजूद है। मौका लगे तो देखिएगा।
यह श्रृंखला एक ऐसे वक्त को दर्शाती है जिसमें आज की भाग दौड़ नहीं थी। एक तरह का ठहराव जिंदगी में होता था। यह ठहराव जो कि अक्सर छोटे कस्बों की खूबी होता है मुझे बेहद पसंद है। शहर की भाग दौड़ भरी जिंदगी, जहाँ दिन शुरू होते ही खत्म होता हुआ सा प्रतीत होता है, में इस ठहराव को महसूस कर पाना एक ऐसे स्वप्न को जीने सा है जिसे आप पाना तो चाहते हैं लेकिन पा नहीं सकते हैं। यह जीना आपको थोड़ी देर के लिए सुकून दे देता है।
सुभदर्शनी सिंह द्वारा निर्देशित 20 एपिसोडस की यह धारावाहिक श्रृंखला अगर आपने नहीं देखी है तो आप इसे एक बार जरूर देखिये। मुझे उम्मीद है अपनी खूबसूरती, अपने पात्रो और उनकी दुनिया की सरलता से आपका मन भी यह मोह लेगी।
एक था रस्टी के यूट्यूब चैनल का लिंक निम्न है। आप उसे सब्सक्राईब करें और इस श्रृंखला के तीनों सीजन का आनन्द इधर ही उठा सकते हैं।
पहला एपिसोड आप नीचे ही देख सकते हैं: