रे (2018)

रे (2018): बांग्ला

निर्देशक, कहानी, स्क्रीनप्ले: अर्नब रींगो बैनर्जी

मुख्य कलाकार:
रंजन रे (शाश्वत चटर्जी) – एक प्रसिद्ध लेखक
अरिजीत उर्फ़ रिट्ज(कौशिक चक्रबर्ती) – एक व्यक्ति जिसे रंजन दिरांग जाते हुए मिला था। रिट्ज एक फोटोग्राफर था।
रोमा (टीना मुकर्जी) – रिट्ज की प्रेमिका

अर्नब रींगो बनर्जी द्वरा निर्देशित रे एक बांग्ला भाषा की फिल्म है जो कि 5 जनवरी 2018 को रिलीज़ हुई थी।

फिल्म की कहानी की बात करूँ फिल्म के केंद्र में निरंजन रे (शाश्वत चटर्जी) है। निरंजन रे एक बेस्ट सेल्लिंग लेखक है जो कि अपने प्रेम उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध है। हाल ही में निरंजन की प्रेमिका उसे छोड़कर चली गयी है। वह दुखी है और इसलिए उसने प्रेम उपन्यास लिखने के बजाय मर्डर मिस्ट्री लिखने का फैसला कर लिया है।

परन्तु उसे रहस्यकथा लिखने का अनुभव नहीं है और इस कारण वह खुद को परेशानी में पा रहा है। वह कुछ लिख नहीं पा रहा है। ऐसे में एक दिन उसे एक ईमेल आता है। ईमेल किसी डॉक्टर हाजरा का है और ईमेल में उसे भालुकपोंग के निकट के कस्बे दिरांग में एक होटल में आने को कहा जाता है। उसे यह भी बताया जाता है कि इस जगह की खूबसूरती उसे एक बेहतरीन मर्डर मिस्ट्री लिखने के लिए प्रेरित करेगी।

निरंजन हाजरा को नहीं जानता है लेकिन डूबते को तिनके का सहारा मानकर ईमेल में दिए गये पते में जाने का फैसला कर देता है।

अपने इसी सफर के दौरान उसकी जिंदगी में दो किरदार अरिजीत और रोमा आते हैं। अरिजीत और रोमा प्रेमी युगल हैं जो घूमने दिरांग जा रहे हैं। जहाँ अरिजीत एक फोटोग्राफर है वहीं रोमा एक भविष्यवक्ता है जो कि व्यक्ति को देखकर उसके मन की बात जान लेती है। उनका भविष्य और भूत दोनों बता देती है।

जब रे को पता लगता है वे लोग भी दिरांग जा रहे हैं तो वह उन्हें लिफ्ट दे देता है। इनके बीच दोस्ती होती है और बातचीत के दौर में रंजन अपनी परेशानी का जिक्र इन लोगों से करता है।यह सुनकर अरिजीत रे की रहस्यकथा पूरी करवाने की जिम्मेदारी ले लेता है।

रे जितना इस युगल को जानता जाता है उसे अहसास होता जाता कि है कि अरिजीत और रोमा वो नहीं है जो वो खुद को दर्शा रहे हैं और उसने इनके साथ दोस्ती करके बहुत भारी गलती कर दी है।

वहीं एक और राज उसे परेशान कर रहा है कि यह हाजरा कौन है जिसने उसे इस जगह बुलाया था। क्या यह कोई साजिश है?

मूल रूप से रे एक रहस्यकथा है और रहस्य के यह तत्व फिल्म की शुरुआत से लेकर अंत तक फिल्म में बने रहते हैं। फिल्म में निरंजन की भूमिका शाश्वत चटर्जी जी ने निभाई है जो कि एक शर्मीले और झिझकने वाले आदमी के रूप में फबते हैं। उनके साथ फ़िल्म में कौशिक चक्रबर्ती हैं जो कि रिट्ज के किरदार में जमते हैं। उन्हें देखकर ही डर लगने लगता है। वह एक शिकारी के जैसे प्रतीत होते हैं। वो कब क्या कर देंगे आपको पता नहीं रहता है। कहानी इन दो किरदारों के दांव पेंचों के बीच चलती है। रिट्ज एक ऐसी बिल्ली प्रतीत होता है जो कि रे नाम के चूहे से खेल रही है। फिल्म में टेंशन लगातार बनी रहती है। घटनाएं होती रहती है। रे ने खुद को जिस मुसीबत में डाला है वह उससे कैसे निकलेगा यह बात आपको पूरी फिल्म दिखला देती है। चक्रबर्ती और चटर्जी की बेहतरीन अदायगी के चलते कहानी आपको बाँधने में सफल होती है। फिल्म में रोमा का किरदार भी बहुत मह्त्वपूर्ण है। यह किरदार टीना मुख़र्जी ने निभाया है। वह फिल्म के सभी फ्रेम्स में मौजूद रही हैं लेकिन इनकी अदाकारी इन दोनों के सामने थोड़ी फीकी लगती है

कहानी में अरुणाचल प्रदेश के दिरांग और आस पास की जगहों का इस्तेमाल किया गया है जो कि बेहद खूबसूरत हैं।

फिल्म में मौजूद गीतों की बात करूँ तो इस फिल्म में एक असमिया गाना औगुनी है। गीत ऋषि द्वारा गाया गया है। गीत के बोल नुरुल हक ने लिखे हैं। संगीत कौशिक और बितुपोन का है। गीत ऐसा है कि आप खुद को इसे गुनगुनाने से रोक नहीं पाते हैं। मुझे असमिया नहीं आती है लेकिन मैं इसके बोलों का अर्थ जरूर जानना चाहूँगा। गीत मुझे भा गया था।

फिल्म की शुरुआत में ही यह बताया जाता है कि यह फिल्म सत्यजित रे को समर्पित है। इसका शीर्षक रे भी शायद इसी कारण दिया गया है। यही कारण है कि पूरी फिल्म में किरदारों द्वारा रे के द्वारा रचे गये किरदार और प्लॉट्स का जिक्र होता रहता है।
अगर आप सत्यजित राय के साहित्य के प्रशंसक हैं तो उनके किरदारों का मंतव्य आप जान पायेंगे। आपको यह पसंद आएगा।

फिल्म में कुछ कमी तो नहीं है लेकिन आखिरी का एक सीन कुछ ज्यादा ओवर द टॉप लगता है। इस सीन में दो हवलदार एक व्यक्ति की तरफ भागते हैं और वो उन हवलदारों को झटक देता है। मुझे यह लग रहा था कि ऐसा शायद परिस्थिति को नाटकीयता प्रदान करने के लिए किया गया था लेकिन इससे बचा जा सकता था। जिस पद पर वह व्यक्ति है वह इस तरह से पुलिस के साथ तो पेश नहीं आएगा।

इसके अलावा फिल्म के आखिरी में ही एक सीन में निरंजन एक पिता पुत्र के बीच की यादों को याद करता रहता है। यह यादें फिल्म में क्यों डाली गयी थी यह भी मुझे समझ नहीं आया। हो सकता है बताया गया हो और सबटाइटल के चलते मेरे देखने से रह गया हो।

बहरहाल अगर आप एक अच्छी रहस्यकथा देखना चाहते हैं तो रे को एक बार इसे देख सकते हैं।

फिल्म अमेज़न प्राइम विडियो में मौजूद है।

औगुनी

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल पेशे से सॉफ्टवेर इंजिनियर हैं। अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एकबुकजर्नल और दुईबात नाम से वह अपने व्यक्तिगत ब्लोगों का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply