वरिष्ठ रंगकर्मी, सिने अभिनेता और टीवी शोज़ में काम कर चुके अद्भुत कलाकार ‘विजय कुमार’ नाटक और रंगमंच को अपना सम्पूर्ण जीवन दे चुके हैं। उन्होंने टीवी, रंगमंच एवं सिनेमा में अपनी अलग पहचान बनाई है। बिहार के रहने वाले कमाल के अभिनेता विजय कुमार ने ढेर सारी फिल्मों में अपनी अदाकारी का जादू दिखाया है।
सलमान खान स्टारर फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ हो या फिर ऋतिक रोशन की फिल्म ‘सुपर 30’ हो, ‘अनार कली ऑफ आरा’ हो या सतीश कौशिक के निर्देशन में बनी सलमान खान प्रस्तुत पंकज त्रिपाठी के मुख्य अभिनय से सजी फिल्म ‘कागज़’ हो, विजय कुमार ने इन फिल्मों में अपने अहम किरदारों से दर्शकों का भरपूर प्यार पाया है। विजय कुमार की यात्रा स्ट्रगल भरी रही है और कई वर्षों में उन्होंने छोटे पर्दे से लेकर सिनेमा तक में अपनी एक्टिंग से सबका दिल जीता है। लोकप्रिय टीवी शो ‘निमकी मुखिया’ में टेटर सिंह का कैरेक्टर विजय कुमार ही ने प्ले किया था जो लोगों को अब भी याद है। विजय कुमार न सिर्फ अपने गजब अभिनय के लिए विख्यात हैं, बल्कि अपनी शानदार डायलॉग डिलीवरी के लिए भी जाने जाते हैं। मल्टी टैलेंटेड एक्टर विजय कुमार थिअटर के भी चर्चित नाम हैं।
उनके काफी मक़बूल हुए नाटक ‘हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं‘ का 872वां शो मुम्बई में हाल ही में हुआ जिसके वह मुख्य अभिनेता और निर्देशक हैं। मुंबई में जब इस नाटक का शो होने वाला था तो मैं भी गया था। मुंबई के वर्सोवा इलाके में आराम नगर में यह नाटक होना था, जहाँ एड्रेस ढूँढना भी अपने आप में एक स्ट्रगल होता है। यह हास्य व्यंग्य वाला नाटक है और नाटक शुरू होने का समय हो चुका था मगर विजय कुमार तबला बजाने वाले का इन्तजार कर रहे थे। चूँकि इस नाटक में संगीत, गायकी और तबले का भी अहम रोल था इसलिए वह इन्तजार कर रहे थे। इस दौरान वहाँ मौजूद ऑडियंस से विजय कुमार ने जो बातें शुरू कीं, उनमे भी हास्य और व्यंग्य का भरपूर रंग था। उम्र के इस पडाव पर भी उनकी ऊर्जा देखते बनती थी। बातों ही बातों में उन्होंने इस नाटक की प्रेरणा कहाँ से मिली से लेकर बिहार और बिहारियों के सन्दर्भ में कई बातें कीं। वाकई यह सोलो ड्रामा था जिसके वह निर्देशक भी थे मुख्य एक्टर भी। बीच-बीच में वह पानी पीने लिए रुकते मगर नाटक की दिलचस्पी बरकरार रखते थे। दर्शक से वह रूबरू रहते थे।बिहार में चुनाव लड़ने वाले एक नेता की भूमिका में उन्होंने सियासत पर जो तंज कसा वह तारीफ़ के काबिल है।नाटक के प्रति उनका जूनून और इस ड्रामे को लेकर उनके अन्दर जो संजीदगी दिखी वह लाजवाब थी.
उन्होंने थिएटर, टेलीविजन और फिल्में तीनों विधाओं में काम किया है। इन सब में उनके दिल के करीब कौन है?
विजय कुमार कहते हैं “मैंने अपने करियर की शुरुआत नाटक से की है और थिएटर ही मेरे दिल के बेहद करीब है। ड्रामा में आपको लाइव दर्शकों के माध्यम से रिएक्शन मिलता है।
क्या फिल्मों और टीवी शोज़ की तरह नाटक के पार्ट-2 -3 भी किये जा सकते हैं..?
अभिनेता विजय कुमार बड़ी गंभीरता से कहते हैं – “नाटक में जहाँ तक पार्ट टू की बात है तो बता दूँ कि पार्ट थ्री तक भी प्रस्तुति हुई है और बहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति रही है। मराठी में विरासत नाम का एक नाटक है। इस पर एक ऐसा नाटक लिखा गया जो नाटक के पहले की कहानी पर था और विरासत के बाद की कहानी क्या हो सकती है उसको लेकर एक नाटक लिखा गया। इस तरह से ये पार्ट वन, पार्ट-टू, पार्ट- थ्री सात घंटे का नाटक था जो दिल्ली में मैंने देखा था। इस नाटक की प्रस्तुति इतनी प्रभावशाली थी कि पलक झपकना भी मुश्किल था। दूसरी बात ये कि इसी नाटक को इब्राहीम अल्काजी साहब ने लिविंग थियेटर नाम से एक ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया था जो अपने स्टूडेंट के लिए किया था जिसमें सुशांत सिंह आदि ने मिल कर इस को प्रस्तुत किया था जो बहुत बेहतरीन था। नाटक तो बहुत गहरी चीज है और इसे डूब कर करना पड़ता है.
क्या आने वाले दिनों में विजय तेंदुलकर, हरिशंकर परसाई, मोहन राकेश के नाटक का भी अगला भाग किया जा सकता है…?
इस सवाल पर विजय कुमार ने बताया कि बिलकुल किया जा सकता है। ख़ास कर मोहन राकेश का जो नाटक है ‘आषाढ़ का एक दिन‘ उसको तो बहुत अच्छे तरीके से पार्ट-2 किया जा सकता है। वैसे राकेश ने इसके अलावा और अच्छे-अच्छे नाटक लिखे हैं- लहरों के राज हंस, आधे अधूरे जो नाट्य साहित्य में मील का पत्थर साबित हुआ है.
क्या टीवी शो निमकी मुखिया का सेकंड पार्ट बन रहा है?
विजय कुमार ने कहा कि इसकी मुझे खबर नहीं है लेकिन अगर निमकी मुखिया का पार्ट २ बनेगा तो अच्छी बात होगी। हाल ही में मैं काफी दिनों तक पटना में था वहां कई लोगों ने मुझसे कहा कि उस टीवी शो को बंद नहीं करना चाहिए था या उसका सेकण्ड पार्ट आना चाहिए। मेरे किरदार को लेकर लोगों के दिल और ज़ेहन में सुखद स्मृति है।
विजय कुमार ने निमकी मुखिया और टीवी इंडस्ट्री के बारे में बताया कि टेलीविजन इंडस्ट्री में डायरेक्टर सेकंडरी होता है, राइटर, प्रोड्यूसर और चैनल की तिकड़ी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। हमारे जो निर्माता लेखक थे जमां हबीब साहेब, उनकी बड़ी पकड़ है।इस तरह के सब्जेक्ट में जहाँ सोशल सटाएरिकल चीजें हैं, समाजिक व्यंगात्मक कहानी की अबूझ पहेली को सुलझाने में वह हमेशा सक्षम रहे हैं। जो अच्छा काम करता है वह सफलता को लेकर इतना पागल नहीं होता है वह कहानियों में किस्सों में लगा रहता है। प्रोफेशनल एथिक्स के साथ काम करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। हमें मालूम है कि एक दिन हमें मिटटी में चले जाना है तो क्या पहले दिन से ही आदमी डिप्रेशन में आ जाता है।
पुरानी फिल्म का पार्ट 2 बनता है तो वह फिल्में अक्सर फ्लॉप हो जाती हैं?
इस बारे में विजय कुमार अपनी राय कुछ यूँ देते हैं “देखिए, हर चीज का एक नियम होता है और साथ में एक अपवाद भी होता है।कोई तयशुदा नियम नहीं है कि पार्ट २ बनेगा तो असफल ही होगा। कई फिल्मो का दूसरा भाग भी हिट रहा है।
आज कल टीवी सीरियल्स में भी पार्ट 2 बनाने की एक होड़ सी लगी हुई है हालांकि सफल बहुत कम हो रहे हैं?
इस सवाल पर विजय कुमार कहते हैं “देखिए, कोई होड़ हो, भेडचाल हो तो इस तरीके की चीजें सामने आती हैं। साथ निभाना साथिया का पार्ट 2 सफलता से चल रहा है।”
हाल ही में आप पटना किस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए गए हुए थे?
विजय कुमार बताते हैं “पटना में मैं एक बड़े प्रोजेक्ट के सिलसिले में गया हुआ था जो मेरे दिल के बेहद करीब है। मेरे रक्त और हड्डी में यह सब्जेक्ट लिप्त है। मैं पटना में एक अकादमी शुरू करना चाहता हूँ। अकेडमी ऑफ़ ड्रामेटिक आर्ट। वहाँ अपने गाँव में एक लाइब्रेरी और एक ऑडिटोरियम बना रहा हूँ।”
अपने अपकमिंग प्रोजेक्ट्स के बारे में विजय कुमार बताते हैं “दो तीन वेब सीरिज आने वाली हैं। एक फिल्म है ‘सरकार की सेवा में’, यह श्रेयस तलपडे की फिल्म है। एक अमेज़न के प्रोजेक्ट में अच्छा किरदार कर रहा हूँ। एक दूसरा प्रोजेक्ट है ‘एके 47’ शशि वर्मा इसको डायरेक्ट कर रहे हैं।”
नाटक के प्रति अपने प्रेम के बारे में वह कहते हैं “मेरा सोलो नाटक चलता रहता है। हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं यह मेरा सोलो नाटक है। गाँव-गाँव गली गली में घूम घूम कर पूरे साल ३६५ दिनों में 100 शो करने की मेरी प्लानिंग है।”
विजय कुमार फिल्में कर रहे हैं, टीवी शोज़ कर रहे हैं मगर उनका दिल नाटक के लिए धड़कता है। थिएटर के लिए उनका यह जुनून वाकई प्रशंसा के काबिल है।