भूत चतुर्दशी (2019)

निर्देशक: शब्बीर मल्लिक
लेखक: मैनाक भौमिक, स्क्रीनप्ले:अरित्रा सेनगुप्ता, अन्वय मुख़र्जी, अरिन्द्र राय चौधरी
सिनेमेटोग्राफी: मनोज करमाकर
संगीत: इन्द्रदीप दास गुप्ता, बेक ग्राउंड स्कोर: नाबरून बोस,
भाषा: बांग्ला

किरदार:
रोनो :  आर्यन भौमिक
श्रेया बनर्जी  : ऐना साहा
पृथा : दीपशिता मित्रा
देबू: सौमेंद्र चटर्जी

मुझे हॉरर फिल्में पसंद है और इसलिए मैं अक्सर उनकी तलाश में अमेज़न प्राइम के चक्कर लगाता रहता हूँ। प्राइम जैसी स्ट्रीमिंग सर्विस की सदस्यता लेने का यह फायदा तो मुझे हुआ है कई तरह की चीजों तक आपकी सहज पहुँच हो चुकी है। मैं भी इसका खूब फायदा उठाता हूँ। जो फिल्में पसंद आती है उन्हें फोन पर डाउनलोड करके रख देता हूँ और फिर आराम से उन्हें देखता हूँ।  ‘भूत चतुर्दशी’ भी मैंने  काफी पहले डाउनलोड कर दी थी लेकिन होली की छुट्टी में मैंने इसे देखने का मन बनाया।

‘भूत चतुर्दशी’ 2019 में रिलीज़ हुई एक बांग्ला फिल्म है। इसकी कहानी मैनाक भौमिक ने लिखी और इसे फिल्म को शब्बीर मल्लिक ने निर्देशित किया है। फिल्म से जुड़े बाकि लोगों का विवरण मैंने ऊपर दे दिया है।

फिल्म के प्रति अपने विचार रखने से पहले मैं यह बताना चाहूँगा कि फिल्म में सबसे पहली चीज जो मुझे आकर्षक लगी थी वह इसका शीर्षक ‘भूत चतुर्दशी’ था।  जब मैंने यह शीर्षक और फिर फिल्म का पोस्टर देखा था तो देखते ही इसे देखने का मन बना लिया था। हाँ, उस वक्त मुझे ‘भूत चतुर्दशी’ का मतलब और बांग्ला समाज में उसके महत्व का कोई भान नहीं था। फिल्म देखने के बाद मैंने इसके विषय में थोड़ा बहुत पढ़ा है तो वही सबसे पहले मैं इधर पहले बताना चाहूँगा।

जहाँ तक मैंने पढ़ा उसके हिसाब से जब  उत्तर भारत में छोटी दिवाली होती है उसी दिन बंगाल में भूत चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी नाम का त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार को कई लोग अब बांग्ला हेलोवीन भी कहने लगे हैं। यह मान्यता है कि इस दिन जीवित संसार और मृत आत्माओं के संसार के बीच का रास्ता खुल सा जाता है और मृत आत्मायें धरती पर आने लगती हैं। कहा जाता है कि इस दिन 14 पूर्वजों की आत्मायें अपने प्रियजनों से मिलने के लिए धरती पर विचरण करती है। इन मृतात्माओं को रास्ता दिखाने के लिए लोग चौदह दिए घर से आस पास जलाते हैं। यह दिये न केवल पूर्वजों की मृत आत्माओं को दिशा निर्देश देते हैं बल्कि बुरी आत्माओं से रक्षा भी करते हैं। इस दिन हर अँधेरे गली कोने को रोशन कर दिया जाता है।

फिल्म की कहानी भी चूँकि भूत चतुर्दशी के इस त्यौहार के इर्द गिर्द घटती है तो फिल्म को यह शीर्षक दिया गया है।

फिल्म की बात करूँ तो भूत चतुर्दशी की कहानी खंडहर में मौजूद एक पागल लड़की के शॉट से शुरू होती है। यह लड़की खंडहर की दीवारों पर कुछ चित्र बनाये जा रही है, कुछ बड़बड़ाये जा रही है और कुछ लिखती  भी जा रही है। शॉट देखते ही आपके मन में यह जानने की इच्छा जागृत हो जाती है कि यह लड़की कौन है? और क्यों इस स्थिति में पहुँची है? फिल्म समाप्त होने एक कुछ देर पहले भी इसी शॉट पर आती है और फिर कुछ सेकंड और चलकर समाप्त होती है।  यानी पूरी फिल्म में आप इस लड़की के इस रूप में आने की कहानी के तरह से देख रहे हैं । कहानी शुरू में ही आपके मन और मस्तिष्क पर पकड़ बना लेती है।

इसके बाद आप रोनो, श्रेया, पृथा और देबू से मिलते हैं। इनसे मिलकर इनके बीच के आपस के समीकरण साफ हो जाते हैं। जहाँ श्रेया एक सीधी साधी लड़की है वहीं उसकी दोस्त पृथा एक तेज तर्रार लडकी है।  इस यात्रा के लिए जो लड़का देबू आता है उसके विषय में भी यह बात शुरुआत में साफ कर दी जाती है कि वह पृथा का नया बॉय फ्रेंड है। यह भी आपको पता चल जाता है कि रोनो  को न पृथा पसंद है और जब वह देबू से मिलता है तो वह भी उसे पसंद नहीं आता है। यानी वह इन्हें झेल ही रहा होता है।  इस कारण इन तीनों के बीच में तनाव सा रहता है जिसको देख आपको अंदाजा हो जाता है कि यह तनाव आगे चलकर इनके बीच कुछ न कुछ पंगे करवाएगा।

आपको यह पता लगता है कि वह लोग भूत चतुर्दशी के दिन बोलपुर के जंगल में मौजूद एक खंडहर में लक्ष्मी बाड़ी में जा रहे हैं। भूत चतुर्दशी की छुट्टी है और रोनो का इरादा एक पन्थ और दो काज करने का है। वह अपनी प्रेमिका के साथ बाहर घूमना भी चाहता है और एक डाक्यूमेंट्री भी इस दौरान बनाना चाहता है। कहानी आगे बढ़ती है और आपको पता चलता है कि बोलपुर के जंगल में कौन सी शैतानी शक्ति है। यह शक्ति लोक्खी है और कहानी जैसे जैसे आगे बढती है आपको लोक्खी की कहानी का पता चलता है।  लोक्खी के विषय में पूरी बातें आपको विभिन्न लोगों के उन  साक्षात्कारों के माध्यम से पता चलती है जिनसे रानो अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते हुए लेता है। यहाँ आपको तन्त्र मन्त्र, काला जादू के विसुअल्स दिखाए जाते हैं जो कि मुझे रोचक लगे। यह आपका ध्यान फिल्म पर केन्द्रित रखते हैं।

इन चार लोगों के लक्ष्मी बाड़ी तक के सफ़र के दौरान कई रोचक और डरावने किरदार भी आपको मिलते हैं जो डर का एक माहौल बनाते हैं। कुछ घटनाएं भी होती है जिससे आगे चलकर कुछ अनिष्ट होने की आशंका बनी रहती है। एक कठपुतली का नृत्य दिखाने वाला व्यक्ति और कंकाल बाबा इन व्यक्तियों में से सबसे अजीब और डरावने थे और मुझे उनके किरदार रोचक लगे।

दर्शक के रूप में कहानी अब तक मुझे बांधकर रखने में सफल हुई और मैं बेसब्री से इन चारों का लोक्खी के घर लक्ष्मी बाड़ी  में पहुँचने का इंतजार करने लगा। आपको यह अहसास तो हो ही जाता है कि कहानी का क्लाइमेक्स लोक्खी के घर में ही होना है और डर इधर ही अपने चरम पर होगा।

कठपुतली वाला व्यक्ति
कंकाल बाबा

जब यह लोग लोक्खी के घर पहुँचते हैं तो उधर पहुँचकर ऐसी चीजें घटित होने लगती हैं कि जिससे घर में मौजूद शक्ति का अहसास आपको होने लगता है। आपको इस बात का अहसास तो हो जाता है कि कहानी का अब उत्थान ही होगा लेकिन यहीं पर आप गलत होते हैं। यहाँ से अब तक कसी हुई चलती कहानी में भटकाव शुरू होता है। पृथा और देबू यहाँ के माहौल से खुश नहीं हैं।बीच में भी काफी ऐसी चीजें हुई है जिसके चलते इनके और रोनो के बीच तनाव है। ऐसे में इधर मामला गड़बड़ाता देख रोनो इन्हें अजय नदी के निकट एक खबूसूरत जगह ले जाता है। वहाँ भी कुछ ऐसा होता है कि माहौल फिर थोड़ा तनावपूर्ण हो जाता है। वहाँ से वापिस लौटते हुए ये वापस खंडहर में आते हैं। यहाँ पर कहानी थोड़ी भटकती है। यह भटकाव रोमांस के रूप है जो कि कुछ ज्यादा देर चलता सा प्रतीत होता है।  डर का बना बनाया माहौल इससे थोड़ा कमजोर पड़ जाता है। यही एक सरप्राइज का प्रसंग है जिसे रोनो अपनी प्रेमिका को देने की बात करता है। इस मामले में वह श्रेया की माँ से भी श्रेया के सामने बात करता है। मुझे यही लग रहा था कि सरप्राइज देना ही था तो श्रेया के सामने बात करने की क्या जरूरत थी? दूर जाकर या इशारों में बात करता? खैर, मुझे लगता है आजकल ऐसे ही सरप्राइज देते होंगे। जिसे सरप्राइज देना उसे बोलकर कि मैं तुझे सरप्राइज दूँगा।

लक्ष्मी बाड़ी में फिर इनके साथ कुछ ऐसा होता है कि ये लोग इधर से भागने की योजना बनाते हैं और इधर से निकलते हैं। जो ‘ऐसा’ कुछ इनके साथ होता है उससे ये जितने घबराते हैं वो मुझे थोड़ा अजीब लगा। जो इनके साथ होता है वैसी दुर्घटनायें मैंने आम दिवाली में होती देखी हैं। कई बार हमारे साथ भी ऐसा हुआ है लेकिन हम इतने नहीं घबराये। इसका जो असर देबू पर होता है यह थोड़ा अजीब लगता है। देबू का चिल्लाना जबरदस्ती का प्रतीत होता है। यही कहानी का एक कमजोर पहलू भी है। इधर किरदारों के इतना डरे होने कोई अच्छा तगड़ा कारण देते तो शायद बेहतर होता।

अब काफी भागदौड़ होती है जिसमें खूब चिल्लम चिल्ली भी होती है। यहाँ पर श्रेया कुछ  बोलना चाहती है लेकिन बोलती नही है। उसका बोलना चाहना और फिर न बोल पाना चिढ़ महसूस करवाता है। कई बार रोनो  उससे पूछता भी है कि वह क्या कहना चाहती है लेकिन वह जो बोलती है वह भी किसी के समझ नहीं आता है। यहाँ भी श्रेया में आया यह बदलाव अटपटा सा लगता है। ऐसा लगता है बस करा दिया गया है। लेकिन इसी के बाद कई अच्छे डरावने सीन और सीक्वेंस भी आते हैं। और फिर आखिर तक फिल्म की कहानी उसी कसावट के साथ बढती है जिससे की उसने शुरू किया था। आगे आने वाले यह सभी सीन देखने में रोमांचक है और कहानी  अपने अंत तक पहुँचती है। यानी आपको पता चलता है कि दीवार पर लिखने वाली वो पागल कौन है। फिल्म का आखिरी हिस्सा रोचक है और बीच का कुछ हिस्सा हटा दें तो कहानी मुझे तो ठीक ठाक लगी। कई जगह यह डराती भी है। कुछ सीन्स अच्छे बने हुए हैं।

हाँ, लोक्खी के बारे में जो बातें थी उनको और दिखाया होता तो बेहतर रहता। हमे बताया जाता है कि उसके अंदर ताकत है लेकिन वह ताकत प्रत्यक्ष रूप से हमे देखने को हमे काफी कम मिलती है। अगर ज्यादा दिखाई होती तो बेहतर होता।

अगर आपको हॉरर फिल्में पसंद हैं तो एक बार आप इसे देख सकते हैं।

एक्टिंग के विषय में मैंने इतना ही कहूँगा कि फिल्म में आखिर में जो लक्ष्मी बाड़ी से भागने और फिर लौटकर आने वाला सीक्वेंस में ही थोड़ा ओवर एक्टिंग की गयी सी लगती है। उसके अलावा मुझे ठीक ठाक ही एक्टिंग लगी।

फिल्म को मैंने एन्जॉय किया।

यह फिल्म प्राइम विडियो पर मौजूद है। आप इस सेवा की सदस्यता लेकर इस फिल्म को देख सकते हैं। फिल्म का लिंक:
भूत चतुर्दशी

लेखक – विकास नैनवाल ‘अंजान’

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

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विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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4 Comments on “भूत चतुर्दशी (2019)”

  1. जी हॉरर के तत्व तो मौजूद है लेकिन जैसे मैंने ऊपर लिखा है कि कहानी में बीच में हल्का सा भटकाव आता है वो थोड़ा सा खलता है… लेकिन कहानी रोचक है…एक बार देखी जा सकती है…कोशिश कीजियेगा…

  2. बहुत बढ़िया समीक्षा। पढ़कर फिल्म देखने की इच्छा जागृत हुई। कुछ अंग्रेजी फिल्मों की भी समीक्षा जरूर डालें।

    आनंद

  3. लेख अच्छा लगा। फ़िल्म काफी समय से प्राइम पर है, तो जानने की इच्छा थी। हालांकि हॉरर मेरा जेनर नही, मग़र आपकी समीक्षा पढ़कर लग रहा कि देखा जा सकता है, हॉरर एलेमेंट कम है।

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