संस्कृति के सच्चे प्रेमी जगदीश आगरी की नई पहल, वाद्य कलाकारों को दिलाएंगे मंच

संस्कृति के सच्चे प्रेमी जगदीश आगरी की नई पहल, वाद्य कलाकारों को दिलाएंगे मंच।

संस्कृति प्रेमी और लोकगायक जगदीश आगरी ने उत्तराखंड के वाद्ययंत्रों को बजाने वाले कलाकारों को एक मंच प्रदान करने हेतु एक नई पहल शुरू की है। इन वाद्य यंत्रों में ढोल, दमऊ से लेकर वो सभी वाद्य यंत्र हैं जो उत्तराखंड में बजाए जाते हैं। इन सबमें सबसे प्रमुख स्थान ढोल दमऊ का है, जिसे उत्तराखंड के लगभग हर त्यौहार में बजाया जाता है। जगदीश आगरी की एक खासियत है कि वो लगातार उत्तराखंड के वाद्ययंत्रों को संवारने में जुटे रहते हैं। वह दिल्ली एनसीआर में रहकर उत्तराखंड की संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर रहे है। उन्होंने पहाड़ के वाद्य यंत्रों को दिल्ली जैसे बड़े शहर में एक खास पहचान दी है।

अब जगदीश आगरी को एक नया जुनून चढ़ा है उन्होंने एक नई मुहिम शुरू करते हुए ढोल-दमाऊ व वाद यंत्रों के लोककलाकारों को साथ जोड़ना शुरू किया है ताकि इन सब कलाकारों को एक समूह में पिरोकर उन्हें मंच तक जोड़ा जा सके और संस्कृति का नाम रौशन हो सके। इस समूह को बनाने का मुख्य उद्देशय अपने उत्तराखंड के वाद्य यंत्रों को देश-विदेश तक पहुँचाना और उनकी विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचा कर उन्हें संरक्षित करने के साथ-साथ सँवारना है।

जगदीश आगरी
जगदीश आगरी, तस्वीर जगदीश आगरी के फेसबुक प्रोफाइल से साभार



आपको बताते चलें कि समूह का नामकरण भी किया जा चुका है और इसका नाम ‘छोलिया’ रखा गया है। इस समूह का पहला कार्य कलाकारों को जोड़कर उनकी समस्याओं को सुनकर सबकी राय के साथ इसका समाधान निकालना है। ताकि एक नयें तरीके से नई तकनीक के साथ इन वाद्य यंत्रों को रचनात्मक रूप से प्रस्तुत किया जा सके। इसका फायदा यह होगा कि कलाकारों को नाम-काम भी मिल जायेगा और नई पीढ़ी तक इस विरासत का विस्तार भी हो जायेगा। इस मुहिम में जगदीश आगरी का साथ निभाने के लिए कई कलाकार सामने आ रहे हैं, जिनमें प्रकाश आर्या, किशन बिष्ट, रमेश बिष्ट, मोहन फुलारा, हरीश शर्मा, रमेश उपाध्याय समेत कई महानुभावों का नाम शामिल है।

हमें आशा है कि ये मुहिम एक अच्छे मकाम तक पहुँचे और उत्तराखंड के कलाकारों को और उत्तराखंड की चर्चित विरासत इन वाद्य यंत्रों को पहचान मिल सके।

About सुजाता देवराड़ी

सुजाता देवराड़ी मूलतः उत्तराखंड के चमोली जिला से हैं। सुजाता स्वतंत्र लेखन करती हैं। गढ़वाली, हिन्दी गीतों के बोल उन्होंने लिखे हैं। वह गायिका भी हैं और अब तक गढ़वाली, हिन्दी, जौनसारी भाषाओँ में उन्होंने गीतों को गाया है। सुजाता गुठलियाँ नाम से अपना एक ब्लॉग भी चलाती हैं।

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